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Saturday, December 11, 2010

सुन ! ऐ जिंदगी


सुन ! ऐ जिंदगी 
मै तुमको  बताना चाहता हूँ 
छोड़ दे तू साथ मेरा
मै तुझसे दूर जाना चाहता हूँ  

देख लिया तेरे साथ चलकर
तन्हा चलता आया हूँ
कोई भी तो साथ न आया 
भीड़ में जलता  आया हूँ

जब से जाना है 
तन्हाई के आलम को 
उसके हर रूप का दीवाना हूँ 
तू तो न बना पाया अपना मुझको 
मै उसका कल से दीवाना हूँ

तेरा जहाँ -ए - दस्तूर 
तुझको मुबारक,
जहाँ हर कदम पे 
धोखा  है  
कहने को तो हर कोई साथ है 
पर हर पल आदमी अकेला है 

सुन ! ऐ जिंदगी 
मै तुमको बताना चाहता हूँ
साथ तो तुम भी चले थे 
अब मै तुझे साथ का मतलब बताना चाहता हूँ 

जैसे उड़े पतंग डोर क संग 
जैसे रहे बिरहन यादो के संग 
जैसे लगे नयन 
सपनो के संग 
वैसे ही  रहे तन्हाई अब मेरे संग, 

सुन ! ऐ जिंदगी 
मै तुमको  बताना चाहता हूँ 
छोड़ दे तू साथ मेरा
मै तुझसे दूर जाना चाहता हूँ  

Saturday, December 4, 2010

मजबूत प्रतिद्वंदी

जब भी मन होता है 
तुमसे मिलने का 
उसी पेड़ की छाव में 
आ जाता हूँ, 

पछी घोसले नहीं बनाते
अब इस पेड़ पर 
तो क्या हुआ 
छाव में बैठते तो है ,

ये आज भी ,
उन हठीले तुफानो का सबसे मजबूत प्रतिद्वंदी है 
जिसमे न जाने कितने घर उजड़  गए   
और ये  खड़ा देखता रहा ,
 
"बस रिश्ते कमजोर पड़ गए 
जो इसकी छाव में बने"  

Friday, November 26, 2010

फरेबी


"अंधेरो  में  
रास्ते  दिखते  है यहाँ,  
दिन  के  उजाले  करते  है  
बगावत,  
रातो  को 
जुगनू  अपनी  चमक  
बिखेरता  है,  
सुबह  का  सूरज  
घना  अँधेरा  है  "

"जहा तक  भी  देखूँ
कुछ  दिखता  नहीं ,
बंद  कर  लू  
जो  आँखे  
तो फिर वही  तेरा
फरेबी  चेहरा  है "

"राहों में आकर तेरी 
राहों में नहीं थे ,
इक तुम थे  
जो मेरे मन मंदिर में होकर भी,
मेरे नहीं थे "

Sunday, November 14, 2010

तेरा आना


जी  लेने  दो  इस  इक  सांस  में  
वो  सारे   पल  मुझको  
सदियों  जिस  पल  के  लिए  
साँसों  का  गला घोटता आया  हूँ  में  

अब आ गए हो जो 
साथ मेरे चलने को 
तो मंजिल भी मिल जाएगी 
तुम दो कदम चलो तो सही 
संग खुशिया भी आएँगी 

Monday, November 1, 2010

दुनिया के रंग


मै दुनिया के हसीन रंगों में, 
अपनी खुशी का रंग ढूँढता  रहा ,
कुछ तो जाने जाने पहचाने मिले ,
बाकियों का वजूद ढूँढता  रहा ,

जिस रंग को सब मिल रहे थे 
सब अपने चेहरे पे मढ़ रहे थे 
मैंने भी सबकी देखा देखी,
उस रंग  को चुन लिया ,

कोशिश की चढाने की,
उन्हें अपने रंग पे, 
कुछ तो चढ़ा  मेरे हिसाब  से,
कुछ अपने रंग में चढ़ गया, 

कुछ दिन तो चमकता रहा, 
फिर वो भी हसने लगे ,
मुझे मेरी वही सूरत 
फिर से दिखाने लगे,
 
दो दिन में ही उसने अपना रंग ,
दिखा दिया, 
मै जैसा था वैसा ही मुझको,
बना दिया, 

"ये सारें रंग,
चढ़ के भी मुझपे, 
बेरंग नजर आते है, 
ये दुनिया के रंग है,
जो दो पल में उतर जाते है,..............."

"सदियाँ गुजर गयी वो रंग नहीं उतरा, 
जहाँ पे सर रख कर वो  इक बार जो रोया था "

अमरेन्द्र "अक्स"

आखिरी सफ़र


सो जाने दो,
मुझे मेरे बिस्तर पे आज  ,
कई सदियों  से ,
सोया नहीं हूँ,
उन बाँहों  की आस में...............

बिस्तर  पे मेरे  ,
टाट का पैबंद है,
तो क्या हुआ, 
नींद फिर भी चैन की आएगी मुझको, 
सदियों से उसके अह्सांस ने, 
सोने नहीं दिया............... 



Tuesday, October 26, 2010

आज बिखरा है सन्नाटा,



आज बिखरा है सन्नाटा,

मेरे चारो ओर,

कोई भी नहीं है यहाँ,

सिवाय अकेलेपन के,



मेरे मन के रातों के झिंगुर,

भी जैसे खुद को चिढ़ा रहे हो,

खुद अपनी ही आवाज को सुनके,

अपना मन बहला रहे हो,



फैली है चारो ओर नीरवता,

कैसे करेगा कोई कविता,

शब्द भी निकलने से पहले,

सोचते है सौ बार,

बहार निकलकर गूजुँगा मै अकेला ,

या होगा बेड़ा पार,

हर बार यही सोचकर चुप रहता हूँ,

और बिखर जाता है सन्नाटा,

मेरे चारो ओर, मेरे चारो ओर ............................

Saturday, October 9, 2010

'अंजाम - ए - वजू'





वो पूँछ बैठा मुझसे

मेरी मंजिल का पता

मै तो सफ़र में मशगूल था

मंजिल का मुझको क्या पता

बस ये ही मेरा कसूर था



मेरे सफ़र की शुरुआत थी या उसका अंत

कुछ भी तो मुझको न था पता,

मुझे तो साथ-साथ चलना था उसके

ये ही मेरी आरजू थी

मंजिल तो आनी ही थी

जब हमसफ़र ऐसा हसीन था





न जाने क्यू,

बीच सफ़र में उसके कदम डगमगाने लगे,

हाथों में पसीना, चेहरे पे भाव डगमगाने लगे

दस्तक देने लगी थी रुसवाईया

सफ़र में मेरे ,

" जो अभी शुरू ही हुआ था"

अभी तो और भी सफ़र

चाहता था तय करना

पर क्या पता था

ये मेरा उसके साथ आखिरी सफ़र होगा "

''मै कस के थामे खड़ा था,

अब तक जिस दामन को.

समझ के अपना दामन,

वो छुटने लगा था , मेरे हाथो से कुछ ऐसे

बन के बिगड़ रहे हो, तेज नशीली आंधियो में,

रेत के टीले जैसे''



मै सफ़र में अपने अभी चंद कदम ही चला था

जिसे अपनी मंजिल का धुंधला सा "अक्स " दिखा ही था

वो फना हो रहा था टुकडों - टुकडों में

ये ही उस सफ़र का 'अंजाम - ए - वजू' था

Thursday, September 23, 2010

"खेवैया"





खुश नसीब है हम


जो हमकों वो ,


"साहिल" पे छोड़ गए


ले जाते बीच भवर में


बन के मेरे "खेवैया"


तो हम कहाँ जाते,


हम तो पथिक है,


कच्ची गलियों के,


बीच भवर में कैसे टिक पाते,


ये अहसान है उनका,


जो साहिल पे छोड़ गए "

Saturday, September 4, 2010

''मेरी मंजिल''

''मेरी मंजिल''




''करता रहा


इबादत,


सारी उम्र उसकी,


कभी 'वो'


मेरे


पास न आया,


खत्म हूआं,


जो


सफ़र मेरा,


वो बन के


मंजिल मेरी,


मुझको 'खाक' में


मिलाने आया''

Wednesday, August 25, 2010


पलके बिछाये  , राह  निहारु
अंतरात्मा  से  तुझे  पुकारू
नयनों  में  बसी  तस्वीर  तेरी  
क्यू  न  आये  ओ  पिया  बैरी

Saturday, August 21, 2010

****सौगात****

"तू मेरी हर बात में है



मेरी सुबह में ,


मेरी शाम में है,


मेरी जीवन की नशीली रातो में ,


मेरे सूखे में और ,


मेरी बरसात में है "






"कोई मुझसे मिलना चाहे,


तो मिले तुझे,


मुझसे मिलने का मजा,


तेरे साथ में है"






"कोई मुझे ढूँढना चाहे ,


तो ढूंढे तुझे,


मेरे जीवन का पता तेरी


हर सांस में है "


तू मेरी हर बात में है

Monday, July 12, 2010

कोई रिश्ता सा है शायद





ये बारिश का मौसम ,

और तेरी याद का आना ,

दोनों में कोई रिश्ता सा है शायद ,

ये जब भी आतें है ,

झूम के आते है ,


घर टूटे या टूटे इंसान ,

या अपना काम कर के ही जाते है ,


वो बहुत रोया है.

मेरे घर के आँगन में ,

तपिश उसकी अब भी ,

मेरी साँसों में है ,


रुक -रुक के कभी तो कभी बेखटक रोया है ,

हर बार सिर्फ उसने मुझे ही भिगोया है ,

ये बारिश का मौसम ,

और तेरी याद का आना I

Sunday, June 27, 2010

"प्यार की तहजीब "

उम्मीद की थी प्यार की तहजीब ने


शायद यही भूल थी मेरी,


जो आज गिरते हुए अश्को में

अपनी हसरत ढूनता हूँ ,

कुछ पल को ठहर जाता जो वक्त

तो अपनी वही सूरत ढूनता हूँ ,


गुजरे थे जिन गलियों से कभी हम

उन में प्यार के बादल ढूनता हूँ


शायद बरस जाये वो ही मुझपे

यही सोच कर रोज उस गली से गुजरता हूँ


मुझे इन्तेजार है उस दिन का

की शायद लौट आये वो तुम्हारी याददास्त

मेरी वो उम्मीद ,

मै पागल हूँ न

आज भी दरवाजे की तरफ देखता हूँ

Wednesday, June 9, 2010

"फिर साथ - साथ चलते है"


मेरी जिंदगी के कुछ लम्हे,

खास बन गए,


जब तक थे साथ मेरे


मेरी सांस बन गए,


मै हूँ जब तक,


मै हूँ आपका ,


आप भले ही हमसे ,


घात कर गए ,


आप समझ न पाए


मेरे हालात को ,


बेवफाई का नाम दिया है,


मेरे जज्बात को ,




याद तुम्हे आती न होगी


मुमकिन है ये


पर जब आती होगी


तो बस "याद" आती होगी



बहते होंगे तेरे भी नैनों से झरने,


जब यादों के झुरमुट में आते होंगे,


कोई तो काँटा होगा,


जो तुम्हारे दामन में चुभ जाता होगा ,




बंद कर के अपनी आँखे,


तुम निकल न पाते होंगे ,


लाख कोशीस करके भी


कुछ पल को ठहर जाते होगे,




चलो मिलते है एक बार फिर से


शिकवे भी दूर करते है,


वक्त ने साथ दिया


तो फिर साथ - साथ चलते है,

Thursday, May 20, 2010

"खामोश निगाहे"

मेरी खामोश निगाहे,
अब भी तेरा  पता ढूंढें,
तू  कही भी हो
ये तेरा ही  निशाँ ढूंढें ,

मै कैसे कह दू 
ये भूल गयी   है तुझे ,
ये  अब भी उस  गली में
पलके  बंद कर के अपनी, तेरा ही  मकां ढूंढे,

शाम होते ही
पैमाने भी देखकर ,
मुझको अपने आगोश में
निकल पड़ते है  तेरा पता ढूंढे ,

रात होती है जो
गमो के साथ ए 'अक्स',
तो खुद सवेरा
आने का बहाना ढूंढे ,

वक्त गुजारे है
तेरे दामन में जो हमने ,
मेरी आँखे उन्ही सुरमयी
नजारों का निशाँ ढूंढे ,


सुर्ख लाली सी छायी है आज भी आँखों में
ये तेरी बिंदिया  की लाली को आज भी ढूंढे I





Friday, April 30, 2010

"मोम का जिस्म "

मोम का जिस्म लेकर,

आग से खेला किया,

मुमकिन थी जीत मेरी,

पर हर पल हारा किया,



ये मालूम था इस खेल में,

हार होनी है मेरी ,

पर न था ये मालूम,

की जिसे जीता रहा हर पल ,

उसी ने मेरी "हार का सौदा " किया,



फिर भी अफ़सोस न होता हार का,

जो हार मेरी उसके आगोश" में होती,

पर वो बेरहम यहाँ भी ,

बस दूर से खेला किया ,



और मै "मोम का जिस्म " लेकर,

आग से खेला किया !

Friday, April 23, 2010

"वफ़ा ए खुशबू"


"वफ़ा ए खुशबू"

मेरी नजरो से नजरे चुराने लगे है
शायद "मुझे छोडकर" वो जाने लगे है
अब "वफ़ा ए खुशबू" भी नहीं आती उनसे
शायद वो अब झूठा लिबास ओढ़ के आने लगे है

तेरा चेहरा हमे आइना दिखता है
मेरी हर खुशी का रंग इसी पे खिलता है
कुछ दिनों से जिंदगी में या तो कोई खुशी नहीं आयी
या खुशी का रंग अब पीला दिखता है


तू गम न कर
इस गम के फ़साने में
तुझे आवाज न दूंगा
खुशिया अगर दोबारा लौटी
तुझे दौड़ के बुला लूँगा .....

"साथ चलने का वादा"


"साथ चलने का वादा"

दो चार दिन की कहानी ही सही
वो साथ चलने का वादा निभा न सके

राहे जुदा थी, तो क्या हुआ
साथ अपने वो यादे , ले के जा न सके

दूर होकर भी उन्होंने कुछ ऐसा उलझाया
चाह के भी हमे कोई सुलझा न सके

सागर के पहलु में जा के भी हम
गहराई सागर की कभी पा न सके

लड़ते रहे सारी उम्र जिनसे
उन्हें हम अपना दुश्मन कभी बना न सके

राज की बात करते रहे सारी उम्र जिनसे
उन्हें राजदां कभी कह न सके

अपनी तो बस यही रवानी रही
पास आकर भी हम सभी के, किसी के पास आ न सके ..

Friday, March 26, 2010

~ "मिलन की कहानी "~


~ "मिलन की कहानी " ~

"कही फूल कही भवरे कही रात और दिन ...

सारी रुत तेरी मेरी कहानी निकले ..."


"जब भी तेरा ख्याल करू ...

मेरी सांसो से तेरी ही खुशबु निकले ..."


"कही ओस कंही बादल तो कही रिमझिम बारिश ...

सारे मंजर में तेरे मेरे ही किस्से निकले ..."


"कही पत्तो की सरसराहट कही चाँद और चांदनी . ..

सारी रंगिनिया तेरे मेरे मिलन की कहानी निकले ..."


"दूर होकर भी हम दूर नहीं ............

आज दुरी के उस पार 'हम' निकले ................

"माँ मै कोसो दूर हूँ तुमसे"


"माँ मै कोसो दूर हूँ तुमसे"

माँ मै कोसो दूर हूँ तुमसे
पर तुम मेरे पास हो माँ


रोज रात में बाते करती, बिना फ़ोन के मेरी माँ
पास नहीं दूर हूँ उनसे , फिर भी मेरे पास है माँ

हर रात को सोने से पहले , लोरी अब भी गाती माँ
मुझे खिलाकर और सुलाकर , सोने जाती मेरी माँ

कैसे मेरे दिन -रात गुजेरते
बिन तेरे हैरान हूँ माँ ..........

आज नहीं कल आ जाऊंगा
दो दिन की तो बात है माँ


"माँ मै कोसो दूर हूँ तुमसे
पर तुम मेरे पास हो माँ

Thursday, February 25, 2010

“ समुंदर की वो दो लहरे ”


“ समुंदर की वो दो लहरे ”


है उत्सुक आज “साहिल ” से मिलने


चली आ रही है लहराते


दोनों एक ही साथ ………….



मची हुई है होड़ आपस में


की कौन मिलेगा पहले उनसे


ये द्वेष है उनके मन में आज



वो दो बहने है सागर में


पर आज है दोनों सौतन


वे साहिल को माने अपना


साहिल को ही संगम …….




मन में अंतर्द्वंद है उनके


फिर भी सहमी दोनों


कौन मिलेगा पहले उनसे …


यही द्वेष है उनके मन में




उन्हें मालूम नहीं है शायद !


की उनका सच्चा प्रेम ,


साहिल ठुकरा देगा एक पल में


मिलकर सिर्फ एक रैन ………




वो लौट न पाएंगी वापस


अपने उस जीवन में


जहा से चली है आज


वो मिलने अपनेपन में ,


मिलने अपनेपन में




करेगा ऐसी हालात साहिल


लौट के आना होगा मुश्किल


ख़त्म हो जायेगा वही पर


उनका सारा जीवन




फिर भी मिलने को है उत्सुक


चली आ रही है मिलो से


कई उजाड़े नैन


कई उजाड़े नैन (बहुत दिनों से नहीं सोई है )




उन्होंने देखे है इससे पहले


कई जोगियों के वो गहने


जो लेकर आती है लहरें अपने ही संग में (शंख ,सीप (मोती ) )


है बिखरे चारो तरफ कुछ टूटे कुछ अच्छे


फिर भी मिलने को उत्सुक है


“ सागर की वो दो लहरे ”

Tuesday, February 2, 2010

"माँगा हर दुआ में आपको "


"माँगा  हर  दुआ  में  आपको "

 आकर  इतने  करीब  ,न  अब  दूर  जाना …
  करना  हमसे  वादा,और  भी  करीब  आना ...
 चाहूँ  तेरी  धड़कन  महसूस  करना ..
 बाँहों  में  तेरी ये  ज़िन्दगी  बिताना ..
 है  तुझपे  कुर्बान  सब  कुछ  मेरा ...
 तुमपे  शुरू  तुमपे  ही  खत्म ये  सारा जहाँ  मेरा …

तेरी  हर  धड़कन  मुझे  जीने  की   चाह  देती  है …
तेरी हर मुस्कान  मेरे  सपनो   को  मंजिल  का  निशाँ  देती  है …

चाहतों  का  मेरी …किनारा  हो  तुम ...

खुशियों  का  मेरी  सहारा  हो  तुम …
मांगी  हर  वक़्त  दुआ  ये  ही  रब  से . ..
कभी  न   करे …मुझे …वो  दूर   तुझसे   

अब   तो  डर   लगता  है ….
कहीं  खो  न  दू  तुझे  ...


मेरी  ज़िन्दगी  सिर्फ  तेरी  ही  मोहताज़  है …
तू  ही  मेरा  कल ….और  तू  ही  मेरा   आज  है ..
तेरी  चाहतों  के  आगे  हर  सुख  कुर्बान   मेरा ….
तेरे  ही  ख्याल  से  कट  रहा  है  ज़िन्दगी  का  ये   सफ़र  मेरा ….

हर   पल  चाहूँ  तुझे  और  भी  ज्यादा ….
और  भी  ज्यादा …......................

ये  प्यार  अब  कभी  न  होगा  कम …..
करो  मुझसे  तुम  ये  वादा
रहोगे मेरे हरदम मेरे  हरदम मेरे हरदम ….........................

Tuesday, January 12, 2010

वो नादाँ था नादानिया करता रहा !



वो  नादाँ  था  नादानिया  करता  रहा 
मै  परेशान  था  वो  मुझे  और  परेशान  करता  रहा 
मेरे  घाव भरते भी  न  थे 
और  वो  घाव  पे  घाव  करता  रहा  ……


उसकी  हर  नादानी  मुझे  प्यारी  थी 
वो  मुझे  मेरी  जान  से  प्यारी  थी 
मै  हर  बार  आँख  मूँद  लेता  उसकी  नादानियों  से 
की  वो  आज  नहीं  तो  कल  समेत  लेगा  अपनी  बाहो  में  ……

न  मालूम  था  की  वो  एक छलावा  है 
उसके  दिल  में  मेरे  सिवा  कोई  और घर  कर आया  है , 
जिसे  मैंने  कभी  अपने  हांथो  से  सवारा  था  ……
मेरे  घर की उन  दिवारों  में  दरार  सी  कर आया   है ........ 



वो  नादाँ  था  नादानिया  करता रहा 
वो  मुझसे  तन्हाइयो   में  हसने  की  बात  करता  रहा 
हम  महफ़िल  में  भी  न  हँसा  करते  थे 
और  वो  तन्हाइयो   में  हसने  की  बात  करता  रहा ……


वो  नादाँ  था  नादानिया  करता  रहा 
मै  परेशान  था  वो  मुझे  और  परेशान  करता  रहा ......