१-
नहीं आसरा,
मंजिल का अब,
न किसी पड़ाव की जरुरत है मुझे
जो भी रुका, मंजिल बना
जो चला गया
वो कुछ पल का रहबर बना
२-
न मेरी कोई डगर है
न मेरा कोई नगर है यहाँ
जिस राह भी तुम ले चलो
वो ही डगर अपनी
जिस नगर में तुम रुको
वो ही नगर अपना है यहाँ
३-
न यहाँ की बस्ती मेरी
न यहाँ के लोग मेरे
जिसने जहाँ भी रखा मुझे
उसी का घर मेरा घर बना
"ऐ समाज के पुरोधा
अब तुम ही बताओ,
मै क्या हूँ ????"
अमर*****
नगर वधु- तवायफ़
बहुत सुंदर ....
ReplyDeleteShukriya संगीता स्वरुप ( गीत ) ji......
Deleteaapka sneh hi hame kuch kerne ko utasahit kerta hai
संवेदनशील अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteShukriya Vandna ji
Deletebahut pyari... sach hi to kaha aapne:)
ReplyDeleteMukesh Kumar ji shukriya
Deleteनगर-वधू की यही दर्द भरी कहानी है!...बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteमेरे उपन्यास 'कोकिला...' के बारे में अपनी राय जरुर दें...अभी शुरुआत है...
लिंक...
http://arunakapoor.blogspot.in/
Dr. Aruna ji shukriya
Deleteआभार ||
ReplyDeleteShukriya Ravi ji
Deleteबहुत ही भावपूर्ण शब्दों में नगरवधू के दर्द को उकेरा है.
ReplyDeleteRekha ji bahut bahut shukriya
Deleteबहुत सुन्दर...
ReplyDeleteअपने अस्तित्व को तलाशती है वो......
सादर
shukriya
Deleteबहुत सुन्दर रचना!
ReplyDeleteआप भी तो हमारे ब्लॉग पर पधारा करें।
Shukriya Shastri ji,
Delete"ऐ समाज के पुरोधा
ReplyDeleteअब तुम ही बताओ,
मै क्या हूँ ????"...man kii bedna chhalak padi
bahut sundar
Shukriya Mamta ji, aapka aana accha lga .aabhar
Deleteनगर वधु के दर्द को जिया है आपने इन पंक्तियों में ...
ReplyDeleteShukriya Sir ji
Deletebahut samvedna samete hui hai yeh rachna nagar vadhu jiski koi paribhasha hi nahi hai koi astitv hi nahi.
ReplyDeleteRajesh Kumari ji shukriya
Deleteबहुत बढ़िया संवेदन शील रचना,सुंदर अभिव्यक्ति,...अमरेन्द्र जी
ReplyDeleteMY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: मै तेरा घर बसाने आई हूँ...
dherrendra ji shukriya.aapka aane se hamare gher me raunak bad jati hai .sadar
Deletehttp://bulletinofblog.blogspot.in/2012/04/blog-post.html
ReplyDeleteक्या है पहचान मेरी ?
ReplyDeleteसंबोधन क्या है मेरे लिए ?
रिश्ता ? क्या है ?
Shukriya Rashmi ji ....Sadar
Deleteअस्तित्व की तलाश में नारी का दर्द
ReplyDeleteबहुत ही संवेदनशील रचना.....
Shukriya Reena ji
Delete"ऐ समाज के पुरोधा
ReplyDeleteअब तुम ही बताओ,
मै क्या हूँ ????"very touching...
Shukriya Dr. Nisha ji
Deleteबहुत ही अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteShukriya Mithilesh ji
Deleteनगर वधू की वस्तुस्थिति की सटीक प्रस्तुति...
ReplyDeleteDinesh ji shukriya
Deleteमार्मिक सटीक रचना..
ReplyDeleteShukriya Maheshwari ji
Deletewah bahut khoob.....
ReplyDeleteShukriya Rewa ji
Delete"ऐ समाज के पुरोधा
ReplyDeleteअब तुम ही बताओ,
मै क्या हूँ ????"
बहुत खूब पंक्तियाँ अमरेन्द्र शुक्ल जी ! बहुत भावुक , बहुत कुछ कहती कविता ! बधाई
Shukriya Yogi ji .bahut bahut shukriya
Deleteबहता जल कहाँ कभी किसी उपाधि में बँधा है।
ReplyDeleteShukriya Praveen ji , kya bat kahi aapne
Deleteसबकी अपनी अपनी मजबूरी है.
ReplyDeleteसुन्दर भावमय प्रस्तुति.
Shukriya Rakesh ji,
Deleteजिसने जहाँ भी रखा मुझे
ReplyDeleteउसी का घर मेरा घर बना
सुंदर मार्मिक शब्दावली प्रेरणादायक कविता ....रचना के लिए बधाई स्वीकारें.
Shukriya Sanjay ji .....bahut dinoke baad aapka yaha aana accha laga **********
Deleteनगर वधु का अपने आप में दर्द समेटे हुए .....बहुत खूब
ReplyDeleteआहें टीसें हैं रंजो गम ,हो हैं सीने में
कोई बतलाए इन्हें पाल के ,रखूं कब तक ||......अनु
Shukriya di.........
Deleteन मेरी कोई डगर है
ReplyDeleteन मेरा कोई नगर है यहाँ
जिस राह भी तुम ले चलो
वो ही डगर अपनी
जिस नगर में तुम रुको
वो ही नगर अपना है यहाँ
-------नगर-वधू का फ़िर अर्थ क्या हुआ? उसका सिर्फ़ एक ही नगर होता है..
-----क्या वास्तव में नगर-वधू तवायफ़ को कहते हैं ?..शायद नहीं....... प्रसिद्ध उपन्यास "वैशाली की नगर वधू" को पढें ...फ़िर अपनी कविता व राय ज़ाहिर करें...
Dr. Shyam Gupta ji, aapka bahut bahut aabhar.jo aap yaha tak aayen, aapki bahumulya Ray ke liye aabhar..................
Deletebahut hi sunder rachna.......
ReplyDeleteSuresh Kumar ji shukriya
Deletebahut hi sunder rachna.......
ReplyDeleteSuresh Kumar ji hausla afjai ke liye shukriya
Deleteबहुत संवेदनशील रचना,बहुत ही सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteआप को सुगना फाऊंडेशन मेघलासिया,"राजपुरोहित समाज" आज का आगरा और एक्टिवे लाइफ
,एक ब्लॉग सबका ब्लॉग परिवार की तरफ से सभी को भगवन महावीर जयंती, भगवन हनुमान जयंती और गुड फ्राइडे के पावन पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं ॥
आपका
सवाई सिंह{आगरा }
Shukriya Sawai Singh ji
Deleteसमर्पण की सहज अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteसुन्दर रचना।
धन्यवाद।
आनन्द विश्वास।
Shukriya Anand Vishwas ji
Deleteअब बताइये इसमें समर्पण की अभिव्यक्ति कहां से आगयी....यह तो तवायफ़ के दर्द की दास्तां है....
ReplyDeleteaapka kehna bikul sahi hai.......mai abhi sikh rha hun so galti ho gyi hai, aapse kshama chahta hu aage se aapki kasauti pe kahara uterne ki kosis kerunga...sadar
DeleteAapka kahna bilkul sahi hai..... Seekh bhi mili.
ReplyDeleteShukriya Sanat ji
DeleteSada ji bahut bahut shukriya
ReplyDeleteDinesh Ji Shukriya
ReplyDeleteबहुत ही मार्मिक रचना ....एक नगर वधु के अन्तःस की !
ReplyDeleteShukriya Saras ji
Deletegahan bhav...sundar rachna
ReplyDeleteShukriya पंछी ji
Deletewaah ! bahot khoob. sundar srajan abhivyakti ke liye badhayi .
ReplyDeleteshukriya Shashi ji
Deleteमन को उद्वेलित करने वाली रचना...
ReplyDeleteब्लॉग का नया आमुख बहुत सुन्दर है...
ReplyDeleteShukriya Dr (Miss) Sharad Singh ji
DeleteShukriya India Darpan ji
ReplyDeleteबहुत मर्मस्पर्शी रचना....
ReplyDeleteShukriya Srimaan ji
Deleteगहन भाव!!
ReplyDeletebahut sundar...
ReplyDeleteadhbhut
ReplyDeletedamdaar rachna, aur samvedansheel!
ReplyDeleteपहली बार देखा ब्लॉग! अब पढूँगा पोस्ट-दर पोस्ट!
ReplyDeletebahut khoob
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