यही कहीं
बाँध कर,
छोड़ा था मैंने
तुम्हारी यादों को
और यही कही
तुमने भी,
लपेट कर सफ़ेद चादर में,
दफनाया था
मेरी यादों को,
मैं आज फिर से
लौट आयीं हूँ,
तुम्हारी यादों को
समेट कर
ले जाने को,
क्या तुम भी
लौट आओगे,
सब भूलकर
मुझे अपनाने,
याद रखना,
गलतियाँ करना
इंसानी फितरत है
और उन्हें माफ़ करना
"रूहानी"
और तुम कभी भी
मेरे लिए ,
कम नहीं रहे
किसी फ़रिश्ते से ................
अमर====
बाँध कर,
छोड़ा था मैंने
तुम्हारी यादों को
और यही कही
तुमने भी,
लपेट कर सफ़ेद चादर में,
दफनाया था
मेरी यादों को,
मैं आज फिर से
लौट आयीं हूँ,
तुम्हारी यादों को
समेट कर
ले जाने को,
क्या तुम भी
लौट आओगे,
सब भूलकर
मुझे अपनाने,
याद रखना,
गलतियाँ करना
इंसानी फितरत है
और उन्हें माफ़ करना
"रूहानी"
और तुम कभी भी
मेरे लिए ,
कम नहीं रहे
किसी फ़रिश्ते से ................
अमर====
बहुत ही भावप्रधान रचना।
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत भावाभिव्यक्ति !
ReplyDeleteNEW POST बनो धरती का हमराज !
और तुम कभी भी
ReplyDeleteमेरे लिए ,
कम नहीं रहे
किसी फ़रिश्ते से
bahut khoob
rachana
वाह!!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना....
अनु
कोमल भावसिक्त बहुत ही सुन्दर रचना...
ReplyDelete:-)
pretty nice blog, following :)
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteमाफ़ करना सबसे बड़ी कला है जिसे हासिल करना आसान नहीं है..
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ReplyDeleteNice Post:- HindiSocial
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