आज बिखरा है सन्नाटा,
मेरे चारो ओर,
कोई भी नहीं है यहाँ,
सिवाय अकेलेपन के,
मेरे मन के रातों के झिंगुर,
भी जैसे खुद को चिढ़ा रहे हो,
खुद अपनी ही आवाज को सुनके,
अपना मन बहला रहे हो,
फैली है चारो ओर नीरवता,
कैसे करेगा कोई कविता,
शब्द भी निकलने से पहले,
सोचते है सौ बार,
बहार निकलकर गूजुँगा मै अकेला ,
या होगा बेड़ा पार,
हर बार यही सोचकर चुप रहता हूँ,
और बिखर जाता है सन्नाटा,
मेरे चारो ओर, मेरे चारो ओर ............................
बहुत अच्छी प्रस्तुति संवेदनशील हृदयस्पर्शी मन के भावों को बहुत गहराई से लिखा है
ReplyDeleteबहुत सुंदर अमरेन्द्र.... मनोभावों की सुंदर प्रस्तुति....
ReplyDeleteSanjay ji yaha tak aane aur rachna ka mann rakhne k liye bahut bahut shukriya.........
ReplyDeleteMonika ji hausla afjai k liye tahe dil se shkriya ada kerta hu aapka..........
ReplyDeletebahot sundar.
ReplyDeleteapna bahumulya samay dene k liye bahut bahut Shukriya Mridula ji
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