Followers

Labels

Powered By Blogger

Saturday, June 30, 2012


'सफ़ेद हंस' 

इक दिन
रह जाओगे ,
समुंदर में मोती की तरह 
बेशकीमती, पर,
कैद अपने ही दायरे में 
अपनी ही तनहाइयों के साथ ..........

कितनी ही परते 
चढ़ी होंगी तुम पर ,
कितने ही कठोर 
बन चुके होंगे तुम 
फिर भी 
ढून्ढ ही लेगा मोती चुगने वाला 'सफ़ेद हंस' 
तुम्हे, 

तोडकर तुम्हारा अभिमान 
बिखरा देगा 
धरातल पर , 
पल भर में तोड़ देगा,
तुम्हारा झूठा गुरुर 

सोच कर वो दिन 
मै आज से हैरान हूँ, 
तुम मेरे लिए न सही 
मै तुम्हे सोचकर परेशान हूँ ........

===="अमर"====
30.06.2012 

Tuesday, June 26, 2012



मेरे घर का वही 
जाना पहचाना एहसास आज भी है, 
जैसा तुम्हारे जाने से पहले था 
बस,
तुम्हारे जाने के बाद 
अब वो बहार नहीं आती...... 
हा खिल जाते है कभी कभी
तुम्हारी ही यादों के सतरंगी  फूल 
और खेलते है मेरे साथ, तुम्हारी ही तरह, 
जैसे की तुम खेला करती थी
 
जैसे ही मै उन्हें अपने ख्वाबों में 
सोचना चाहूँ, 
न जाने कहाँ चले जाते है 
शायद छिप जाते है, या 
चिढाते है मुझे 
जैसे कह रहे हो, 
ढूंढ सकते हो, तो  
ढूंढ लो मुझे, 
मै तो तुम्हारा अपना  हूँ, 
तुम अपनी ही चीज नहीं ढूंढ सकते, .........

हर बार 
बार बार मै थक सा जाता हूँ 
ढूंढते-ढूंढते,
निस्तेज से हो जाते है मेरे प्राण 
सिहर उठती है मेरी रूह, 
और तब,
जब दिए में रौशनी इतनी धीमी हो जाती है 
की अब बुझ ही जाएगी ........
वो खुद बा खुद सामने आकर 
अहसासात कराते है, मेरे कमजोर मनोभावों को 
जिसमे इक सिरे पर "तुम्हारी रूपरेखा" 
और "दुसरे पर उपसंहार" 

"मेरे मन का वही कोना 
जहा जन्म लेते है तेरी यादों के दो सतरंगी फूल"

=====अमर===== 

Wednesday, June 20, 2012


मेरी साँसों के स्पंदन 
तेज होने लगे है,
जब से,
चिर-परिचित कदमो की 
आहट सुनाई दी है 

वो आयेंगे न, 
या, ये  मेरे मन की मृग-मरीचिका है, 
मेरे कानो ने, सुनी है जो आहट
कही वो दूर से किसी का झूठा आश्वाशन तो नहीं 
कही मेरी प्रतीक्षा 
मेरा विश्वास
सब निराधार तो नहीं,.........

नहीं उन्हें आना ही होगा 
उन्हें मजबूर होना ही पड़ेगा
कृष्णा भी तो आये थे 
मथुरा से वृन्दावन
अपनी गोपियों से मिलने
मै भी तो उनकी रुक्मणी हूँ.......... 
मुझे उनके साथ ही रहना है 

वो आयेंगे जरुर आयेंगे, 
मेरा विश्वास, 
मेरी आराधना,   
यूँ ही व्यर्थ नहीं जाने देंगे वो, 
उन्हें भी अहसास होगा 
मेरे विरह की पीड़ा का, 
मेरे करुण क्रंदन का, 
कुछ तो मोल होगा 
उनकी निगाहों में, 
मेरे आंसुओ का...
उनके बहने से पहले 
वो मेरी बाँहों में होंगे  
मै उनकी पनाहों में.....

मेरी साँसों के स्पंदन 
तेज होने लगे है,
जब से,
चिर-परिचित कदमो की 
आहट सुनाई दी है,

====अमर===== 

Wednesday, June 6, 2012


दूर, बहुत दूर, 
मेरी यादों के झुरमुटों में 
झीने कपड़े से बंधा 
मेरी साँसों के सहारे 
तेरी यादों का वो गट्ठर,  
जिन्हें वक्त के दीमक ने 
अंदर ही अंदर खोखला 
कर दिया है,
बचा है जिसमे
सिर्फ और सिर्फ ,
मेरी अपने अकेले की साँसों का झीनापन 
जो शायद , किसी भी वक्त, 
निकल कर गठरी से 
तड़पने लगे ,

वही कुछ दूर पे ही 
बैठे है 
भूखे ,प्यासे, कुलबुलाते 
चील और गिद्ध , 
जो न जाने 
कब से इसी आस में है 
की कब मेरा बेजान होता जिस्म 'बेजान' हो 
और वो अपनी भूख मिटा सके......

निरंतर,
दिन प्रतिदिन 
खोखले होते बिम्ब, 
दिखने लगे है.... 
झीना कपडा भी हो रहा है जार-जार
फिर भी लोग आकर्षित होते है, 
मेरी ख्वाहिशे देखने को, ... 
न जाने क्यूँ ....
शायद, 
कैद करना चाहते हों, अपने-अपने कैमरो में 
सजाना चाहते है 
पेंटिंग्स की तरह, अपने घरो में  
इससे पहले शायद ही, उन्हें 
किसी के सपने 
ऐसे भरे बाजार तड़पते दिखे हों 
"तेरी यादों का वो गट्ठर" 

अमर*****