उम्मीद की थी प्यार की तहजीब ने
शायद यही भूल थी मेरी,
जो आज गिरते हुए अश्को में
अपनी हसरत ढूनता हूँ ,
कुछ पल को ठहर जाता जो वक्त
तो अपनी वही सूरत ढूनता हूँ ,
गुजरे थे जिन गलियों से कभी हम
उन में प्यार के बादल ढूनता हूँ
शायद बरस जाये वो ही मुझपे
यही सोच कर रोज उस गली से गुजरता हूँ
मुझे इन्तेजार है उस दिन का
की शायद लौट आये वो तुम्हारी याददास्त
मेरी वो उम्मीद ,
मै पागल हूँ न
आज भी दरवाजे की तरफ देखता हूँ
ैअच्छी कोशिश है। इस-ढूनता हूँ शब्द का अर्थ नही समझ पाई शायद आप ढूँढता लिखना चाहते थे। उम्मीद की थी प्यार की तहजीब ने --- बहुत खूब मगर आज कल इसी तहज़ीब की तो कमी है। शुभकामनायें
ReplyDeletewaah aapne bahut sunder likha ... komal bhaaw hain .. badhayi
ReplyDeleteबहोत ही अच्छा लिखा है आपने. शुभकामनाएँ
ReplyDeleteभारत प्रश्न मंच पर आपका स्वागत है. mishrasarovar.blogspot.com
nirmala kapila ji shkriya apna bahumulya samay dene k liye .................
ReplyDeletePragya Didi Ji aapko yaha pakar bahut accha laga ........aur aapke comments to mere liye jaise barso se sukhe pade khet me barish ho, k saman hai ................Pranam didi ji .............
ReplyDeleteAshish mishra ji hausla afjai k liye shukriya ................& thanx for invitation....
ReplyDeleteइधर से गुजरते हुए यूँ ही निगाह पड गयी तो चली आई .....
ReplyDeleteअच्छी शुरुआत है .....कुछ टंकण की गलतियां हैं सूधार लें ......
ढूनता- ढूंढता
हरकीरत ' हीर' ji shukriya .jo aapki najre hum pe bhi inayat hui ................hausla afjai k liye tahe dil se shukriya .............
ReplyDeleteaage se jo galti ki hai unko sudharnne ki puri kosis karunga ....................
aur plz jab kabhi bhi aap idher se aap gujre to ek baar rahmi karam hum p bhi karen ..........aapka yaha aana accha laga...........