मेरी खामोश निगाहे,
अब भी तेरा पता ढूंढें,
तू कही भी हो
ये तेरा ही निशाँ ढूंढें ,
मै कैसे कह दू
ये भूल गयी है तुझे ,
ये अब भी उस गली में
पलके बंद कर के अपनी, तेरा ही मकां ढूंढे,
शाम होते ही
पैमाने भी देखकर ,
मुझको अपने आगोश में
निकल पड़ते है तेरा पता ढूंढे ,
रात होती है जो
गमो के साथ ए 'अक्स',
तो खुद सवेरा
आने का बहाना ढूंढे ,
वक्त गुजारे है
तेरे दामन में जो हमने ,
मेरी आँखे उन्ही सुरमयी
नजारों का निशाँ ढूंढे ,
सुर्ख लाली सी छायी है आज भी आँखों में
ये तेरी बिंदिया की लाली को आज भी ढूंढे I
बहुत ही सुन्दर रचना...
ReplyDeleteReena Maurya Ji shukriyan
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