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Friday, April 23, 2010

"वफ़ा ए खुशबू"


"वफ़ा ए खुशबू"

मेरी नजरो से नजरे चुराने लगे है
शायद "मुझे छोडकर" वो जाने लगे है
अब "वफ़ा ए खुशबू" भी नहीं आती उनसे
शायद वो अब झूठा लिबास ओढ़ के आने लगे है

तेरा चेहरा हमे आइना दिखता है
मेरी हर खुशी का रंग इसी पे खिलता है
कुछ दिनों से जिंदगी में या तो कोई खुशी नहीं आयी
या खुशी का रंग अब पीला दिखता है


तू गम न कर
इस गम के फ़साने में
तुझे आवाज न दूंगा
खुशिया अगर दोबारा लौटी
तुझे दौड़ के बुला लूँगा .....

2 comments:

  1. khushi ka rang pila dikhta hai !
    amrendra ! aapki kvita bhut achhi hai !shubh kamnayen ! dusron ke blog ko bhi dekhen aur tippni dalen !

    ReplyDelete
  2. Pranam .Aur mai dekhta to hu blog bahut se logo ka per tippni nahideta pata nahi kisi ko accha lage ya na lage ha jaha mai join hu waha pe jinki rachna acchi hoti hai tippdi deta hu................

    ReplyDelete