"अंधेरो में
रास्ते दिखते है यहाँ,
दिन के उजाले करते है
बगावत,
रातो को
जुगनू अपनी चमक
बिखेरता है,
सुबह का सूरज
घना अँधेरा है "
"जहा तक भी देखूँ
कुछ दिखता नहीं ,
बंद कर लू
जो आँखे
तो फिर वही तेरा
फरेबी चेहरा है "
"राहों में आकर तेरी
राहों में नहीं थे ,
इक तुम थे
जो मेरे मन मंदिर में होकर भी,
मेरे नहीं थे "
सुन्दर रचना
ReplyDeleteSameer Ji Hardik Abhinandan hai aapka .....
ReplyDeleteHausla afjai k liye bahut bahut shukriya......
Ashish ji rachna ka maan rakhne k liye mai abhari hu aapka.shukriya
ReplyDeleteफरेबी
ReplyDeleteशीर्षक में गज़ब का आकर्षण है जो यहाँ तक खींच लाया .सुन्दर कविता.
बहुत सुंदर रचना एक एक शब्द भाव लिए हुए
ReplyDeleteShukriya Sanjay ji .....................
ReplyDeletefarebi hote hi aaisen..... gahre jajbat ke sath sunder kavita
ReplyDeleteShukriya Upendra ji
ReplyDeleteBahut sunder likha hai shukla ji..
ReplyDelete:)
Aditya ji bus aapka saath hi .Shukriya .................
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