"साथ चलने का वादा"
दो चार दिन की कहानी ही सही
वो साथ चलने का वादा निभा न सके
राहे जुदा थी, तो क्या हुआ
साथ अपने वो यादे , ले के जा न सके
दूर होकर भी उन्होंने कुछ ऐसा उलझाया
चाह के भी हमे कोई सुलझा न सके
सागर के पहलु में जा के भी हम
गहराई सागर की कभी पा न सके
लड़ते रहे सारी उम्र जिनसे
उन्हें हम अपना दुश्मन कभी बना न सके
राज की बात करते रहे सारी उम्र जिनसे
उन्हें राजदां कभी कह न सके
अपनी तो बस यही रवानी रही
पास आकर भी हम सभी के, किसी के पास आ न सके ..
वो साथ चलने का वादा निभा न सके
राहे जुदा थी, तो क्या हुआ
साथ अपने वो यादे , ले के जा न सके
दूर होकर भी उन्होंने कुछ ऐसा उलझाया
चाह के भी हमे कोई सुलझा न सके
सागर के पहलु में जा के भी हम
गहराई सागर की कभी पा न सके
लड़ते रहे सारी उम्र जिनसे
उन्हें हम अपना दुश्मन कभी बना न सके
राज की बात करते रहे सारी उम्र जिनसे
उन्हें राजदां कभी कह न सके
अपनी तो बस यही रवानी रही
पास आकर भी हम सभी के, किसी के पास आ न सके ..
Dude.nice lines...
ReplyDeleteyou have potential to become a very good gazal writer. you have nice thoughts, you just need to work on your urdu vocab and follow the gazal rules properly. rest you already have..Best of luck!
SHKURIYA PUSHKER JI ............ BAHUT ACCHE LAGE AAPKE VICHAR ,,,,,,,,,,,NEXT TIME JARUR SUDHAR LAUNGA OR URDU KE UPER BHI MEHNAT KAR RAHA HU...........
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