जब भी मन होता है
तुमसे मिलने का
उसी पेड़ की छाव में
आ जाता हूँ,
पछी घोसले नहीं बनाते
अब इस पेड़ पर
तो क्या हुआ
छाव में बैठते तो है ,
ये आज भी ,
उन हठीले तुफानो का सबसे मजबूत प्रतिद्वंदी है
जिसमे न जाने कितने घर उजड़ गए
और ये खड़ा देखता रहा ,
"बस रिश्ते कमजोर पड़ गए
जो इसकी छाव में बने"
बहुत भावपूर्ण!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर.... भावुक अंदाज...
ReplyDeleteवाह बहुत खूब....
ReplyDeleteप्यारी सी कविता..
भावपूर्ण.......मन को छू गयी आपकी कविता.
ReplyDeleteआपका साधुवाद
आपके अपने ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है
अरविन्द जांगिड,
कनिष्ठ लिपिक,
सीकर (राजस्थान)
ब्लॉग पता-
http://arvindjangid.blogspot.com/
Sameer Sir, Aapka tahe dil se shukriya............
ReplyDeleteMahendra ji hardik abhinandan hai aapka.........
ReplyDeleteShekhar Ji rachna ka maan rakhne k liye bahut bahut shukriya
ReplyDeletearvindjangid ji swagat hai aapka ..shukriya
ReplyDeleteआज पहली बार आपके ब्लॉग पर आया हूँ बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ,अच्छी रचना , बधाई ......
ReplyDeleteShiva ji aap yaha tak aaye mere liye garv ki baat hai .....Shukriya ..aise hi aap saath banaye rakhiyega........mai aapke sahyog ka sadaiv akanshi hu
ReplyDeleteक्या बात है..बहुत खूब....बड़ी खूबसूरती से दिल के भावों को शब्दों में ढाला है.
ReplyDeleteSanjay ji shukriya
ReplyDeleteGahre... Bhavpoorn!
ReplyDeleteसुलभ § Sulabh ji bahut bahut shukriya
ReplyDeletebohot khoob
ReplyDeleteShukriya Sara Sach ji
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