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Saturday, December 4, 2010

मजबूत प्रतिद्वंदी

जब भी मन होता है 
तुमसे मिलने का 
उसी पेड़ की छाव में 
आ जाता हूँ, 

पछी घोसले नहीं बनाते
अब इस पेड़ पर 
तो क्या हुआ 
छाव में बैठते तो है ,

ये आज भी ,
उन हठीले तुफानो का सबसे मजबूत प्रतिद्वंदी है 
जिसमे न जाने कितने घर उजड़  गए   
और ये  खड़ा देखता रहा ,
 
"बस रिश्ते कमजोर पड़ गए 
जो इसकी छाव में बने"  

16 comments:

  1. बहुत भावपूर्ण!

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  2. बहुत सुन्दर.... भावुक अंदाज...

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  3. वाह बहुत खूब....
    प्यारी सी कविता..

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  4. भावपूर्ण.......मन को छू गयी आपकी कविता.

    आपका साधुवाद

    आपके अपने ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है

    अरविन्द जांगिड,
    कनिष्ठ लिपिक,
    सीकर (राजस्थान)

    ब्लॉग पता-
    http://arvindjangid.blogspot.com/

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  5. Sameer Sir, Aapka tahe dil se shukriya............

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  6. Mahendra ji hardik abhinandan hai aapka.........

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  7. Shekhar Ji rachna ka maan rakhne k liye bahut bahut shukriya

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  8. arvindjangid ji swagat hai aapka ..shukriya

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  9. आज पहली बार आपके ब्लॉग पर आया हूँ बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ,अच्छी रचना , बधाई ......

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  10. Shiva ji aap yaha tak aaye mere liye garv ki baat hai .....Shukriya ..aise hi aap saath banaye rakhiyega........mai aapke sahyog ka sadaiv akanshi hu

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  11. क्या बात है..बहुत खूब....बड़ी खूबसूरती से दिल के भावों को शब्दों में ढाला है.

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  12. सुलभ § Sulabh ji bahut bahut shukriya

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