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Thursday, February 24, 2011

आने वाली शाम



ये दिन भी बड़े अजीब  हैं 
जब शाम ढले तुम पास आते हों 
दोपहर अपनी सुनहरी चादर समेटता
शाम फैलाती अपनी ठंडी-ठंडी बाहें

रात की रागिनी करती हमारा इन्तजार 
अपनी पनाहों में लेने को 
चाँद भी चांदनी को भेजता ज़मी पर
हमे अपनी भीनी भीनी रौशनी में जगमगाने को 

ये तारे भी 
हमे अपने होने का अहसास दिलाते 
देख कर हमारे मिलन की बेला 
कही दूर गगन में टूट से जाते

तारो से बिछड़ने का गम 
चाँद भी न सह पता
मुझे तेरे आँचल में देखकर 
चंद पलो में रात को लेकर चला जाता 

और कब हमारे मिलन की ऋतु बीत जाती  
ये हम जान भी न पाते 
हम फिरआने वाली शाम का इंतजार करते, 

ये दिन भी बड़े अजीब  हैं 
जब शाम ढले तुम पास आते हों