तुम्हे पाने की ललक आज फिर से उठी है
तुम पा न सकूंगा ये पता है हमे फिर भी,
इस दिल को मिलने की कसक आज फिर से उठी है
आज अपनी आँखों में ख्वाब फिर से वही है
तेरी बाहों में आने को आग फिर से लगी है
उसी जन्नत में आने को दिल करता है आज
जिस जन्नत में आके आग दिल को लगी है
आज अपनी आँखों में ख्वाब फिर से वही है
मेरी प्यास बुझाने को तुने .........
कभी पिलाये थे जो पैमाने अपने होंठो से ...
उन्ही पैमानों की प्यास आज फिर से लगी है
आज अपनी आँखों में ख्वाब फिर से वही है
कभी खायी थी कसमे हमने अपनी चाहतो की जहा
देखे थे सपने खुली आँखों से जहा.
उन्ही वादियों में खो जाने की ललक आज फिर से उठी है
आज अपनी आँखों में ख्वाब फिर से वही है ! ! ! !