फांसले भी मिट गए
दूरियां भी न रही,
वो लकीर ही न मिटी
जो तुम खींच के गए,
पास भी आते गए
दूर भी जाते गए ,
नजदीकियां भी रही, दरमियाँ
और वो दूरियां भी बढ़ाते गए,
हम सहरा - ए - मुहब्बत में ,
कुछ ऐसे उतरते गए,
सरे बाज़ार रुसवा हुए
मोहब्बत - ए - झील में
और वो खड़े देखते गए ,
"इस फरेबी दुनिया में ऐसा कई बार हुआ ,
गुनाहगार कोई और था, गुनाहगार कोई और हुआ "