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Monday, July 8, 2013

=====अधूरी दास्ताँ =====



ये जो तुम 
बात बात पे रूठ जाते हो न,
अच्छी बात नहीं 
घर की छोटी -छोटी बातो को 
घर के बाहर तक ले जाते हो 
ये भी अच्छी बात नहीं ......
देख लेना 
एक दिन ऐसे ही दो -दिलो में 
तल्खिया बढ़ जाएँगी 
हम कितना भी चाहेंगे इन्हें दूर करना 
दरारे फिर भी रह जाएँगी ......

सुना है 
तुम तो बड़े समझदार हो 
बड़ी समझदारी की बातें करते हो 
और ये जरा सी बात तुम नहीं समझे 
जानते हो,
टूटे हुए खिलोने भी 
कभी-कभी जिंदगी भर की चोट दे जाते है 

कम से कम , 
मेरा -अपना न सही ,
घर के आँगन के बारें में तो सोचो 
उसके चीखते सन्नाटो के बारे में सोचो..... 
जो पौधे हमने मिलकर लगाये थे 
उनमे खिले फूलो की, 
मुस्कराहट के बारें में सोचो 
जो अभी ठीक से खिला ही नहीं 
उसकी पहली अल्हड मुस्कान के बारें में सोचो .......

पर, अब, शायद तुम कुछ सोचना नहीं चाहते 
तुममे अहम् आ गया है 
जिसकी वजह से 
अब तुम्हारी सोचने समझने की 
क्षमता भी जाती रही .....
तुम्हारी पल भर की जीत ने अँधा बना दिया है तुम्हे 
तुम्हे कुछ दिखाई नहीं दे रहा 
मदमस्त हो उस जीत के हर्षौल्लास में ....
और हो भी क्यूँ न 
तुमने उस जीत के लिए क्या कुछ नहीं किया 
क्या मेरा , क्या मेरे आँगन का 
सब कुछ तो दाव पर लगा दिया तुमने 
तुम तो बस जीत जाना चाहते थे 
कैसे भी ,किसी भी कीमत पर .........
पर इतना जान लो 
कुछ रिश्ते हम नहीं बनाते
वो उपर वाले की मर्जी से बनते है 
और उन्हें तोड़ने वाला कभी खुश नहीं रह सकता .......

आज नहीं तो कल
शायद तुम्हारे अक्ल पर पड़ा अहम् का पर्दा हट जाये 
तुम बहुत कुछ सोचो 
और तुम्हे कुछ न समझ आये 
तुम कितना भी हाथ पैर पटको 
और नतीजा कुछ न आये, 
समझ लेना, तुमने कुछ तो ऐसा किया है 
जो किसी को 
जिंदगी भर के लिए 
एक दर्द भरी दास्ताँ दे गया है 

तुम चाहो की सब फिर से पलट जाये
उस वक्त बस इतना समझ लेना 
की अब बहुत देर हो गयी !!........

=====अमर=====