कल रात
लिखते लिखते
आँख लग गयी
ख्वाब आ गये ,
जो चुभने से लगे
मेरी ही आँखों में,
ये कैसे ख्वाब
जो मेरे होकर मुझे ही चुभे ******
कही दूर, कही पास
बहुत दौड़ भाग
मंजिल पाने को
मिल भी गयी
वो खुश भी बहुत हुआ
पर ये क्या
मै भी तो साथ था
बहुत दौड़ा
उसके पीछे पीछे
जिसने मंजिल को पाना चाहा
पर मेरी मंजिल कहाँ.......
ये कैसे ख्वाब
ये कैसी मंजिले
जो मेरे होकर भी
मेरे नहीं ******