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Thursday, September 29, 2011

जिंदगी से कुछ पल उधार लिए




तेरी तस्वीर को दिल से लगाये बैठे है 
हम अपनी  ख्यालो की अलग दुनिया  बसाये बैठे है 
जिंदगी जो , अब तक व्यर्थ थी, मेरी
उसे तेरे लिए फागुन का मदमाता मौसम बनाये बैठे है 

महकी महकी सी साँसे मेरी 
तुमसे मिलने की है अभिलाषा मेरी 
अकेले ही चला था अमृत की तलाश में 
अब, तुझे पाने की आस में अपनी मृग तृषा बुझाये बैठे है 

दर्द की अंधी गली है , कोई भी न मोड़ है 
सभी स्वप्न टूटकर बिखरे है यहाँ, फिर भी 
हम तेरी खातिर उन गलियों से
रिश्ता निभाए बैठे है  

तेरी तस्वीर क्या मिली , मुझे यूँ लगा आइना मिल गया मुझको 
'सूरत-ए- अमर'  आईने में देखी नहीं कभी, तेरी तस्वीर को आईना बनाये बैठे है 

मिल गयी 'रौनक ए जहा' मुझको ,तेरे नाम से  
हम अपने नाम को तुझसे मिलाये बैठे  है 
बहारो ने भी लंगर डाल दिए, तेरे नाम से 
जो  झील के उस पार डेरा जमाये बैठे है 

मेरी हसरतो के तकाजो ने तेरे लिए, जिंदगी से कुछ पल उधार लिए 
हम अपनी हैसियत तो भूले ही थे , वो भी अब अपनी दुनिया भुलाये बैठे है