मोम का जिस्म लेकर,
आग से खेला किया,
मुमकिन थी जीत मेरी,
पर हर पल हारा किया,
ये मालूम था इस खेल में,
हार होनी है मेरी ,
पर न था ये मालूम,
की जिसे जीता रहा हर पल ,
उसी ने मेरी "हार का सौदा " किया,
फिर भी अफ़सोस न होता हार का,
जो हार मेरी उसके आगोश" में होती,
पर वो बेरहम यहाँ भी ,
बस दूर से खेला किया ,
और मै "मोम का जिस्म " लेकर,
आग से खेला किया !
वाह ! वाह ! अमरेन्द्र ! आपने तो कमाल कर दिया !बेहद खुबसूरत रचना ! बहुत बहुत बधाई !
ReplyDeleteaapka ashirwad se ab kuch sikh raha hu ..............sader pranam................
ReplyDeleteaisa hi to ho raha hai aajkal .jinse aap ummid lagaye rahate hai vahi aapko vifal karne ki yojanaye bhi banate hai.
ReplyDeletepar aapki rachna baht hi prabhavshali v preranadaai hai.hardik badhai.
poonam
thanx a lot Mam............
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