"इन नशीली फिजाओं से, तेरी महक क्यूँ नहीं जाती
बरसों से ये टिमटिमाती लौ,अब क्यूँ बुझ नहीं जाती "
ए सनम!
"मुझे भी दे पता, तू उन बेदर्द रातो का
जहाँ पर तुझे रहकर ,मेरी याद नहीं आती "
"मेरी जिंदगी सुलगती है ,हर पल तेरी जुस्तजू की खातिर
मुझे इक बार में ही जलाने क्यूँ नहीं आती "
"तुने मुझको भुलाया है ,या भूली है खुद को भी
शायद तुझे... मेरी या अब खुद की आवाज ही नहीं आती "
"क्यूँ अपलक निहारती हो मुझको , दरवाजे की दरारों से
पल भर के लिए ही सही, तू इन दरारों को भरने क्यूँ नहीं आती "
"मेरी जिंदगी फ़ना है ... ,फ़ना है मेरी मौत भी तुझ पर
तू इक बार में ही मुझको हराने क्यूँ नहीं आती "