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Tuesday, June 26, 2012



मेरे घर का वही 
जाना पहचाना एहसास आज भी है, 
जैसा तुम्हारे जाने से पहले था 
बस,
तुम्हारे जाने के बाद 
अब वो बहार नहीं आती...... 
हा खिल जाते है कभी कभी
तुम्हारी ही यादों के सतरंगी  फूल 
और खेलते है मेरे साथ, तुम्हारी ही तरह, 
जैसे की तुम खेला करती थी
 
जैसे ही मै उन्हें अपने ख्वाबों में 
सोचना चाहूँ, 
न जाने कहाँ चले जाते है 
शायद छिप जाते है, या 
चिढाते है मुझे 
जैसे कह रहे हो, 
ढूंढ सकते हो, तो  
ढूंढ लो मुझे, 
मै तो तुम्हारा अपना  हूँ, 
तुम अपनी ही चीज नहीं ढूंढ सकते, .........

हर बार 
बार बार मै थक सा जाता हूँ 
ढूंढते-ढूंढते,
निस्तेज से हो जाते है मेरे प्राण 
सिहर उठती है मेरी रूह, 
और तब,
जब दिए में रौशनी इतनी धीमी हो जाती है 
की अब बुझ ही जाएगी ........
वो खुद बा खुद सामने आकर 
अहसासात कराते है, मेरे कमजोर मनोभावों को 
जिसमे इक सिरे पर "तुम्हारी रूपरेखा" 
और "दुसरे पर उपसंहार" 

"मेरे मन का वही कोना 
जहा जन्म लेते है तेरी यादों के दो सतरंगी फूल"

=====अमर===== 

24 comments:

  1. बहुत खूबसूरत भाव संयोजन

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  2. सच उस कोने को खोजती ये रचना बहुत ही सुंदर बन पडी है

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  3. बहुत उम्दा अभिव्यक्ति!

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  4. बहुत सुन्दर शब्द संयोजन विरह भाव को प्रकट करने में सफल हुए बहुत अच्छी प्रस्तुति

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  5. अटूट श्रद्धा और विश्वास विपरीत काल में आगे बढ़ने को प्रेरित करता है.

    सुंदर भाव सुंदर प्रस्तुति.

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  6. मन को प्रभावित करती सुंदर अभिव्यक्ति ,,,,,

    RECENT POST,,,,,काव्यान्जलि ...: आश्वासन,,,,,

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  7. सुन्दर रचना.. सुंदर अभिव्यक्ति .

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  8. बहुत सुन्दर .

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  9. बेहद खूबसूरत हैं ये यादों के फूल...

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  10. स्मृतियों का बोझ हृदय में रह रह बढ़ता जाता है..

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  11. वाह ... अनुपम भाव ... बेहतरीन प्रस्‍तुति।

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  12. प्रेम, विरह और यादों के लम्हों में सिमटी लाजवाब रचना ...

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  13. बहुत ही गहरे और सुन्दर भावो को रचना में सजाया है आपने.....

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  14. बहुत सुन्दर गहरे छूती रचना..
    बेहतरीन...
    :-)

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  15. बहुत ही अच्छा लगा| क्या खूब लिखते हैं !!

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  16. अहसासात कराते है, मेरे कमजोर मनोभावों को
    जिसमे इक सिरे पर "तुम्हारी रूपरेखा"
    और "दुसरे पर उपसंहार"

    "मेरे मन का वही कोना
    जहा जन्म लेते है तेरी यादों के दो सतरंगी फूल"
    sunder bhav badhai aapko
    rachana

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  17. बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति

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