दूर, बहुत दूर,
मेरी यादों के झुरमुटों में
झीने कपड़े से बंधा
मेरी साँसों के सहारे
तेरी यादों का वो गट्ठर,
जिन्हें वक्त के दीमक ने
अंदर ही अंदर खोखला
कर दिया है,
बचा है जिसमे
सिर्फ और सिर्फ ,
मेरी अपने अकेले की साँसों का झीनापन
जो शायद , किसी भी वक्त,
निकल कर गठरी से
तड़पने लगे ,
वही कुछ दूर पे ही
बैठे है
भूखे ,प्यासे, कुलबुलाते
चील और गिद्ध ,
जो न जाने
कब से इसी आस में है
की कब मेरा बेजान होता जिस्म 'बेजान' हो
और वो अपनी भूख मिटा सके......
निरंतर,
दिन प्रतिदिन
खोखले होते बिम्ब,
दिखने लगे है....
झीना कपडा भी हो रहा है जार-जार
फिर भी लोग आकर्षित होते है,
मेरी ख्वाहिशे देखने को, ...
न जाने क्यूँ ....
शायद,
कैद करना चाहते हों, अपने-अपने कैमरो में
सजाना चाहते है
पेंटिंग्स की तरह, अपने घरो में
इससे पहले शायद ही, उन्हें
किसी के सपने
ऐसे भरे बाजार तड़पते दिखे हों
"तेरी यादों का वो गट्ठर"
अमर*****
दर्द भरी चाहत कों लोग तमाशा समझते हैं कभी कभी ...
ReplyDeleteदर्द भरी नज़्म ...
Naswa ji shukriya yaha tak aane ke liye
Deleteऐसे भरे बाजार तड़पते दिखे हों
ReplyDelete"तेरी यादों का वो गट्ठर",,,,,,
मन मोहक भावपूर्ण सुंदर प्रस्तुति ,,,,,
WELCOME TO MY RESENT POST,,,,,काव्यान्जलि ...: स्वागत गीत,,,,,
Shukriya dheerendra ji
Deleteअति सुन्दर मन भावुक सा हो गया आपकी रचना पढते
ReplyDeleteआपको हार्दिक बधाई
दिनेश पारीक
Dinesh ji shukriya
Deleteबहुत सुन्दर रचना...बहुत बढ़िया प्रस्तुति!आभार .
ReplyDeleteShukriya Sir ji
Deleteबहुत ही गहरे और सुन्दर भावो को रचना में सजाया है आपने.....
ReplyDeletebhawukta se bharpoor aapki rachna.../
ReplyDeleteबेहद गहरे भाव..
ReplyDeleteShukriya Praveen ji
Deletewaah kya baat hai anupam bhav sanyojan behtreen bhav abhivyakti
ReplyDeleteवाह...
ReplyDeleteबहुत बहुत सुंदर.......
अनु
Shukriya Anu ji
Deleteबहुत बहुत सुंदर रचना..
ReplyDeleteshukriya
Deleteमहफूज़ यादें ...संजोयी हुई सौगातें जब 'जीर्ण शीर्ण' होने लगें...तो बस अंत निकट ही है .......सुन्दरता का...रूमानियत का...उम्मीद का...!!!!!!!
ReplyDeleteShukriya Saras ji
Deleteवाह क्या तडप है, बहुत ही सुंदर ।
ReplyDeleteBahut Sunder Bhav
ReplyDeletebahut bahut aabhar
Deleteकुछ ऐसा हैं जो दिल पर गहरा असर करता हैं ...
ReplyDeleteShukriya rachna ke saath hamara maan rakhne ke liye
Deleteबहुत सुन्दर रूपक जिसमें सारा कुछ सँवर गया है !
ReplyDeletesadar aabhar
Deleteइससे पहले शायद ही, उन्हें
ReplyDeleteकिसी के सपने
ऐसे भरे बाजार तड़पते दिखे हों
"तेरी यादों का वो गट्ठर"
मेरी भी ख्वाहिश देख सकूँ ....
"तेरी यादों का वो गट्ठर" ....
तब शायद कुछ लिख सकूँ ....
Vibha ji shukriya
Deleteयादों की तड़प .... गहन अभिव्यक्ति
ReplyDeleteयादों के झुरमुटों में कितने ही दर्द समाए हुए हैं ...भावपूर्ण रचना..
ReplyDeleteShukriya ji
Deleteआपकी यादों का गट्ठर जाने कितनी संवेदनाएं समेटे है । जीवन्तता के साथ
ReplyDeleteबढ़िया रचना !
ReplyDeleteबहुत गहरे अर्थ के साथ लिखी गई कविता ...बेहद खूबसूरत भाव ...बहुत उम्दा
ReplyDeleteAnu di pranam............
Deletebahut hi gahre bhav hain....
ReplyDeleteगहरे अर्थबोध की कविता
ReplyDeleteyadon ka gatthar ka har pej apane men kuchh chhipaye rahata hai aur jab jo ulat gaya kuchh naya bhav dekar rach jata hai.
ReplyDeletegahan bhavon purn rachna ke liye aabhar !
तीव्र वेदना की अनुभूति झलक रही है इस रचना में....सुन्दर प्रस्तुति...आभार!
ReplyDeleteदर्द को बोझ से इतने भारी महसूस नहीं हुए कभी यादों के गट्ठर।
ReplyDeleteगहरी रचना.....
ReplyDeletebahut khoob
ReplyDeletemमार्मिक!
ReplyDeletewah ! itna dard ,itne gehre bhav...gr888 write
ReplyDeleteयादों का वो गट्ठर achchha hai...:)
ReplyDeleteबहुत सुंदर और गहन भाव लिए हुये ... सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteचील और गिद्ध भी तो हम में से ही कोई है जो नज़रें गडाए रहता है और मौक़ा पाते ही वार करता है, यादें जब हार जाती हैं, यादें जब छोड़ जाती हैं. मन को बहुत गहरे छू गई रचना, शुभकामनाएँ.
ReplyDeleteSadar Aabhar
ReplyDeletegahan bhaav ...liye sundar rachna ...shubhkamnayen .
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