हर बार ,
मैंने बात तुम्हारी मान ली
तुमने सूरज को चाँद कहा
मै उसमे भी तुम्हारे साथ चली
तुमने जब भी चाहा
तुम्हारी बाँहों में
पिघल पिघल सी गयी ,
तुम्ही को पाकर जिवंत हुई
तुम्ही को पाकर मर - मर सी गयी
पर तुम नहीं बदले !
तुम आज भी वहीँ हो
जो सदियों पहले थे
जिसके लिए औरत,
कल भी एक भोग्या थी
आज भी एक भोग्या है
तुम्हारा कोई दोष नहीं
दोष तुम्हारी सोंच का है
जो कल भी नहीं बदली थी
आज भी नहीं बदली
कितने ही तरीको से
कितनी ही बातें कर लो तुम,
पर नहीं बदलेंगे
तुम्हारे उपमान हमारे प्रति
क्योंकि तुम आदमी हो
उपर से दिखते हो
फौलाद से मजबूत
पर अंदर से
उतने ही खोखले हो
औरत कल भी औरत थी
आज भी औरत है
उसने कल भी
तुम्हे चाहा था
आज भी तुम्हे पूजा है
रही कभी निर्जल तुम्हारे लिए
तो कभी तुम्हारे लिए दुआएं मांगी
इक तुम ही हो जिसने कभी उसे भरे समाज नंगा किया
तो कभी उसके लिए दहेज़ की वेदी मांगी
तुम कल भी वही
आज भी वही हो
तुमने उसे बाजार में देखा था
आज घर में देखा है
तुम्हारे निगाहें वही
अंदाज
अनोखा है
बार बार
हर बार ,
मैंने बात तुम्हारी मान ली
तुमने सूरज को चाँद कहा
मै उसमे भी तुम्हारे साथ चली
आखिर कब बदलोगे तुम ??????
कब ??? बदलने की प्रकृति नहीं
ReplyDeleteAdarniya Rashmi ji, bahut bahut aabhar ............
Deletesansar chal hi parivartan pe rha hai ..........kuch bhi yahan ek jaisa nahi rehta.shyd ek din hum bhi badal jaye****
बहुत बढिया।
ReplyDeleteएक नारी मन का...उसकी भावनाओं का सुंदर चित्रण।
Atul Srivastava ji shukriya
Deleteतुमने जीत को हार कहा
ReplyDeleteमै तुम्हारे साथ चली....
Shukriya Heer ji, aap aise hi hamara manobal badhaye rahiye ..aabhar
Deleteसदियों से चली आ रही पुरुष मानसिकता नहीं बदलती है ...
ReplyDeleteक्योंकि तुम आदमी हो
Deleteउपर से दिखते हो
फौलाद से मजबूत
पर अंदर से
उतने ही खोखले हो.waah bahut achchi abhivaykti.
Naswa Sahab aapka kehna bilkul sach hai .........per kabhi na kabhi to badalna hi hoga....parivartan hi sanasar ka saswat niyam hai
DeleteNisha ji rachna ke saath saath maan rakhneke liye bhi bahut bahut shukriya
Deleteमानसिकता बदलना इतना आसान नही हैं संस्कारों मे रची बसी जो है।
ReplyDeleteniyati aur prakriti badalti nahin, niroopaaye hai apne apne swabhaav se stree bhi aur purush bhi. fir bhi ek ummid ki shayad...
DeleteAdarniya Vandna ji bikul sach kaha hai aapne, per dhire dhire hi sahi samj ki mansikta badal rahi hai
DeleteDr, Jeni Shabnam ji aapka comments bahut accha laga.aabhar
Deleteएक नारी मन की भावनाओं का सुंदर चित्रण।
ReplyDeleteAapka bahut bahut Shukriya
Deleteऔरत कल भी वही थी
ReplyDeleteआज भी वही हैं
हर रूप में वो एक औरत ही हैं
युग बदले ..ना नर बदला ना नारी बदली .....
Adarniya Di ji .aabhar
Deleteरही कभी निर्जल तुम्हारे लिए
ReplyDeleteतो कभी तुम्हारे लिए दुआएं मांगी
इक तुम ही हो जिसने कभी उसे भरे समाज नंगा किया
तो कभी उसके लिए दहेज़ की वेदी मांगी
वाह!
Shukriya Sir ji........
Deleteरही कभी निर्जल तुम्हारे लिए
ReplyDeleteतो कभी तुम्हारे लिए दुआएं मांगी
इक तुम ही हो जिसने कभी उसे भरे समाज नंगा किया
तो कभी उसके लिए दहेज़ की वेदी मांगी ....बहुत गहरी बात कह गयी पंक्तिया......
Sushma ji aapke bahumulya comments keliye aapka hardik abhinadan
Deletebahut hi achha prashn liye huye hai rachna. soch ki gehrai jhalak rahi hai.
ReplyDeleteshubhkamnayen
Shukriya Prritiy ji....
Deleteshayad kabhi nahi ???.............
ReplyDeletebahut sach likha hai .............
Shukriya Roshi ji, per jald hi badlav ki laher aayegi.jaisa ki hamesha se hota aayan hai
Deleteसुंदर रचना
ReplyDeleteसोच नहीं बदलने की पुरूष प्रधान
aabhar ,aapka swagat hai
Deleteनारी मन कि पिडा को खुबसुरती से बयान किया है
ReplyDeleteसुंदर भावाभिव्यक्ती
Reena ji Swagat hai aapka.aabhar
DeleteThis comment has been removed by the author.
Deleteदोनों ही कहाँ बदले...इतनी सहनशीलता आज की नारी को शोभा नहीं देती...
ReplyDeleteVaanbhatt ji bahut bahut shukriya ........per nari sadiyon se hi aisi hi hai............sab kuch sehna kuch na kehna............
Deleteबहुत ही सुंदर प्रस्तुति . कडवे सच की परतो को खोला है आपने .समाज का दूसरा रूप भी बखूबी दर्शाया है .जो छुपा रहता था वोह धीरे से सामने आया ............सार्थक , सुंदर प्रस्तुति के लिए बधाई .
ReplyDeleteAdarniya Shashi ji bahut bahut aabhar .........
Deleteआखिर कब?????????????
ReplyDeleteSandhya ji shukriya .waise ye hi to sawal hai ki akhir kab.............
Deleteफितरत नहीं बदलने वाली ...सटीक प्रस्तुति
ReplyDelete:)
Deleteभावों और शब्दों का उत्कृष्ट संयोजन बेहद गहन अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteSanjay ji shukriya
Deleteअच्छा लिखा है,पर बहुत कुछ बदला भी है !
ReplyDeleteSantosh ji shukriya
Deleteसुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ उम्दा प्रस्तुती!
ReplyDeleteUrmi ji bahut bahut aabhar
DeleteShukriya Sir ji
ReplyDeleteShastri ji shukriya......
ReplyDeleteपुरुष मानसिकता का बहुत अच्छे ढंग से और नारी की भावनाओं का बहुत सही चित्रण है आपकी रचना में/दिल को छु गई आपकी रचना /बहुत बधाई आपको /
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है /लिंक है
http://prernaargal.blogspot.com/
Prerna ji shukriya itne sunder comments kerne ke liye
Deleteसुंदर प्रस्तुति . बधाई
ReplyDeleteShiv kumar ji swagat hai aapka .apne sneh aise hi hamare uper banaye rahiye
Deleteऔरत कल भी औरत थी
ReplyDeleteआज भी औरत है...
बिलकुल सही कहा अमर जी .
एक नारी के अंतर्मन की बात बड़ी खूबसूरती से इन पंक्तियों में दर्शायी है आप ने.पर आज की स्थिति में काफ़ी परिवर्तन आया है... बधाई.
Pranam, aapka yaha aana aur rachna ka maan rakhne ke liye bahut bahut shukriya
Deleteबहुत बढिया।
ReplyDeleteएक नारी की भावनाओं का सजीव सुंदर चित्रण।
Rajput ji shukriya
Deleteतुम कल भी वही !
ReplyDeleteआज भी वही हो !
kya kahu kuch kahne ko hai hi nahi ...itni sundar bhavnayen liye ...bahumlya aur sarthak sabdon me guthne ke baad jo kavya ki rachna huye hai ...bahut hi sundar hai .... ek dard jo nikla hai aapke man se ..! bahut bahut badhaiya
Dear Ashok aise hi aate rehna yaha aur apne comments se hamara maan banaye rehna aabhar
Deleteतुम्हारा कोई दोष नहीं
ReplyDeleteदोष तुम्हारी सोंच का है
जो कल भी नहीं बदली थी
आज भी नहीं बदली
...सही फरमाया है आपने...जब यह सोच बदलेगी,तभी समाज में बदलाव आएगा!...उमदा रचना!
Shukriya Aruna ji .aise hi apna snehasis banaye rahiye ...aapka hrdik swagat hai
Deleteनारी मन की सुंदर अभिव्यक्ति,अमरेन्द्र जी,बहुत अच्छी रचना,..बहुत२ बधाई
ReplyDeleteNEW POST --26 जनवरी आया है....
मेरे पोस्ट पर आइये,.......
Dheerendra ji bahut bahut shukriya ........
Deleteअति सुन्दर, नारी की मार्मिक पीड़ा का सजीव सटीक विवरण।
ReplyDeleteकृपया इसे भी पढ़े-
क्या यह गणतंत्र है
क्या यही गणतंत्र है
Dinesh ji aabhar ..........
Deleteसामयिक रचना, कर्म बदलने के लिये मन भी पवित्र करना पड़ेगा।
ReplyDeleteवसंत पंचमी की शुभकामनायें! माँ सरस्वती की कृपा बनी रहे!
Shukriyan Bandhuver
Deleteकुछ अनुभूतियाँ इतनी गहन होती है कि उनके लिए शब्द कम ही होते हैं !
ReplyDeleteha sach kaha aapne .aabhar
Deleteकुछ अनुभूतियाँ इतनी गहन होती है कि उनके लिए शब्द कम ही होते हैं !
ReplyDeleteSach kaha apne ......aabhar
Deleteबहुत खूबसूरत रचना...
ReplyDeleteसच कहा आपने... "पर तुम नहीं बदले..."
Mahesh Ji shukriya
Deleteबहुत ही सार्थक एवं चिंतनीय प्रस्तुति !
ReplyDeleteआभार !
Manish ji yaha tak aane aur rachna ka maan rakhne ke liye bahut bahut shukriyan
Deleteभावों की सुंदर अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteMahendra Verma ji Bahut Bahut shukriya
Deleteइतनी सत्य,सार्थक एवं चिंतनीय रचना.......आभार! ...
ReplyDeleteShukriya Di
Deleteकभी नहीं ...
ReplyDeleteयही कड़वा सच है , वाकई .!