बुझने से पहले,
मेरी आखिरी लौ को
इक रात, तुमने ही तो
अपने हथेलियों की गुफाओ में छुपाया था मुझे,
"उसी दिन मै बस गयी थी तुम्हारे हाथो की लकीरों में
पर आज भी नहीं ढूँढ पायी
उन लकीरों से होकर तुम तक आने का रास्ता"
उस रात शायद तुम्हे
जरूरत थी मेरी रौशनी की
कुछ अँधेरा सा था घर में तुम्हारे .........
तुम कुछ सकुचाये -सकुचाये से
कुछ घबराये से थे
तब मै साथ थी तुम्हारे
रोशन कर गयी थी तुम्हारे हा तुम्हारे घर को
अपनी ही रौशनी से ,
दूर कर दी थी तुम्हारी उस रात की उलझन
अपने निश्चल प्रेम के प्रकाश पुंज से
जगमगा उठे थे जिसकी रौशनी में तुम,
मेरी चाहत थी तुम्हे संग अपने जगमगाने की
न छोड़ने की उन अँधेरी कंदराओ में तुम्हे ,
जहा दर्द से सीले अँधेरे खीचते है अपनी ओर,
जहा जाने के बाद लौट आना सपनो सी बात,
थी मै इक नन्ही शमा, इरादे फौलाद से मेरे,
और मेरा वही कोना
जहा मै जलती रही अपनी उम्र भर ,
निहारती रही
सिर्फ तुम्हे , सिर्फ तुम्हे , क्योकि
"बुझने से पहले,
मेरी आखिरी लौ को
इक रात, तुमने ही तो
अपने हथेलियों की गुफाओ में छुपाया था मुझे "
अटूट प्रेम से निहारा था
कभी, तुमने मुझे
अँधेरी रातों में,
कितनी ही देर तक,
मुझे वो पल भुलाये नहीं भूलते
वो इक - इक पल तुम्हारे संग बिताये हुए
मुझे अब भी याद है जब तुम .............
फिर एक दिन...........
जो मेरे जीवन का अंतिम दिन था ,
तुम्हे लगा होगा
अब ख़त्म होने वाली है
तुम्हारे जीवन में प्रकाश फ़ैलाने वाली मेरी रौशनी
या मेरी रौशनी में अब वो चमक नहीं रही
जो तुम्हे आकर्षित कर सके,
रास्ता दिखा सके तुम्हे घने अंधेरो में
जिसे तुमने ही बचाया था इक रोज............
मेरी लौ
मेरी अंतिम कापती लौ से पहले
तुम्हे करना था कुछ इन्तजाम ,
ये ही सोच कर
तुमने अपलक निहारा मुझे ,
सोचकर, जब ये न होगी,
तो कैसे रोशन होगा तुम्हारा जीवन,
मै कुछ पल और जलती
या शायद कुछ पल और .............
पर तुम्हारी अतृप्त अभिलाषाओ ने
तुम्हे मजबूर किया होगा ,
मुझे मिटाने के लिए
या शायद मेरी रौशनी फीकी पड़ गयी होगी,
तुम्हारे विश्वास के आगे
कुछ कापी सी होगी, मेरी लौ
या कुछ तेज सी हो गयी होगी
अपने अंतिम पहर से पहले
और तुमने डर के अँधेरे से
इक नयी शमा जलाई होगी
ख़त्म कर दिया मेरा अस्तित्व
फिर उसी तरह , उसी जगह
इक दूसरी शमा जलाकर
जैसे तुमने मुझे जलाया था............
बुझ गयी मै, सब कुछ सहे
बिन कुछ कहे,
ये ही मेरी आखिरी इच्छा थी
अपने अंतिम समय तक तुम्हे रोशन करने की
तुम्हे उदीयमान देखने की हमेशा हमेशा , क्योकि
"बुझने से पहले,
मेरी आखिरी लौ को
इक रात, तुमने ही तो
अपने हथेलियों की गुफाओ में छुपाया था मुझे"
उसी दिन मै बस गयी थी तुम्हारे हाथो की लकीरों में
पर आज भी नहीं ढूँढ पायी
उन लकीरों से होकर तुम तक आने का रास्ता "
"बुझने से पहले,
ReplyDeleteमै कुछ पल और जलती
या शायद कुछ पल और .............
बहुत ही भावमय .. विरह की पीड़ा को सुन्दर पंग्तियों में इस तरह ...सजाया है की यह काव्य अपनी सार्थकता को पाता है !
इतनी सुन्दर रचना देने के लिए धन्यवाद्
Ashok ji bahut accha laga aapka yaha aana aur rachna ka maan rakha
DeleteWaah,
ReplyDeleteKya baat hai bhai ji.
Ghazab ka likkha hai.
Nishabd kar diya.
Koi shabd nahi jo is rachna ko bayan kar paaye.
Antatah bus itna kahuga.,
Chha gaye guru.
Dear Gaurav yaha tak aane ke liyebahutbahut shukriya
Deletemeri, chaht thi "tumhe sang apne jgmgane ki"
ReplyDeletethanks for wonderful "rachna"
realy nice
"उसी दिन मै बस गयी थी तुम्हारे हाथो की लकीरों में
ReplyDeleteपर आज भी नहीं ढूँढ पायी
उन लकीरों से होकर तुम तक आने का रास्ता"
बहुत वेदना है इन पक्तियों... भाव छलक उठे हैं... गहन अभिव्यक्ति
Sandhya ji bahut bahut aabhar .aapka aana sadaiv hi humebahut accha lgta hai
Deleteगहन अभिव्यक्ति
ReplyDeleteShukriya Lalit ji
Deleteउम्दा....गहरे भाव लिए लेखनी ...बहुत खूब
ReplyDeleteDi aapka aana hi mere liye bahut hai .aur aapke comments to mere liye amrit versha ke saman ..................aabhar
Deleteबेहतरीन भावपूर्ण रचना !
ReplyDeleteManish ji hardik swagat hai aapka .bahumulya tippani ke liye aapka aabhar
Deleteख़त्म कर दिया मेरा अस्तित्व
ReplyDeleteफिर उसी तरह , उसी जगह
इक दूसरी शमा जलाकर
जैसे तुमने मुझे जलाया था...
गहन भाव लिए सुन्दर रचना
Adarniya Sangita ji bahut bahut shukriya
Deleteभावविभोर कर देनेवाली रचना है..
ReplyDeleteअति उत्तम रचना है. जिसमे मिलन कि याद है फिर वही यादो के दिये के बुझने
का अहसास...
एक बुझती लौ का सजीव वर्णन. भावनामय अभिव्यक्ति.
Deleteबहुत ही अच्छी.... जबरदस्त अभिवयक्ति.....वाह!
ReplyDeleteshukriya Sushma ji
Deletevery very nice..best of luck and God save u
ReplyDeleteThank you so much
Deleteपर आज भी नहीं ढूँढ पायी
ReplyDeleteउन लकीरों से होकर तुम तक आने का रास्ता" ------क्यों???????...यह किस की असफ़लता है????? यदि मोम की शमा बनने की अपेक्षा मिट्टी, बाती, स्नेहक दिया बना जाय तो..????
Sir mai aapki baton se bilkul sahmat hu........shama kiski bhi ban jaye per jalna to use bhi hai aur khatm bhi hona hai ..........bus ye hi dershane ki kosis ki hai.waise aglai bar se dhyan rakhunga aapki kasautiyon pe khara uterne ki****
Delete"उसी दिन मै बस गयी थी तुम्हारे हाथो की लकीरों में
ReplyDeleteपर आज भी नहीं ढूँढ पायी
उन लकीरों से होकर तुम तक आने का रास्ता"
बहुत वेदना है इन पक्तियों... भाव छलक उठे हैं... गहन अभिव्यक्ति
Sangita ji bahut bahut aabhar .jo aapne mere jajbatonkikadr ki .........
Deleteभाव विह्वल करती एक बे -चैन रचना .
ReplyDeleteShurkiya Sir ji
Deleteअपने हथेलियों की गुफाओ में छुपाया था मुझे"
ReplyDeleteउसी दिन मै बस गयी थी तुम्हारे हाथो की लकीरों में
पर आज भी नहीं ढूँढ पायी .bahut achcha.
Nisha ji shukriya .......
Deleteaapke bahumulya comments se hamara manobal bahut bad jata haui
laajwaab...
ReplyDeletenamaskar amar ji ....aaj post ka koi option nahi dikh raha .........isiliye reply se post kar rahi hoon .
Deleteअपने हथेलियों की गुफाओ में छुपाया था मुझे"
उसी दिन मै बस गयी थी तुम्हारे हाथो की लकीरों में
पर आज भी नहीं ढूँढ पायी
उन लकीरों से होकर तुम तक आने का रास्ता "............bahut hi sunder rachna
Kumar Sahab Shukriya
DeleteShashi Purwar ji hardik abhinandan
Deletewaah amar ji ab aur kya kahun shabd hi nahi rahe, sabne pehle hi sab kuchh keh diya. bas itna hi kahungi... fantabulas.
ReplyDeleteSadar Pranam, aapke aane se hamare gher(BLOG) ki raunak bad gyi
Deleteबहुत खूब .... मन के भाव शब्दों बन के उतर आए हैं इस रचना में ..
ReplyDeleteNAswa ji shukriya rachna ki sarthakta sidh hoti hui aapke bahumulya comments ke dwara
Deleteख़त्म कर दिया मेरा अस्तित्व
ReplyDeleteफिर उसी तरह , उसी जगह
इक दूसरी शमा जलाकर
जैसे तुमने मुझे जलाया था............
बुझ गयी मै, सब कुछ सहे
बिन कुछ कहे,
....मन की वेदना को बहुत सुन्दर शब्द दिए हैं..बहुत भावपूर्ण और मर्मस्पर्शी..
Shukriya Sharma ji .........aapke bahumulya comments se rachna ki sarthakta sidh ho gyi
Deleteबहुत खूबसूरत...
ReplyDeleteहलचल सी पैदा कर डाली मन में...
सुन्दर!!!
Vidya ji shukriya yaha tak aane aur rachna ka maan badhane ke liye
Deleteसुन्दर अति सुन्दर अमरेन्द्र जी
ReplyDeleteअपने हथेलियों की गुफाओ में छुपाया था मुझे,
ReplyDelete"उसी दिन मै बस गयी थी तुम्हारे हाथो की लकीरों में
पर आज भी नहीं ढूँढ पायी
उन लकीरों से होकर तुम तक आने का रास्ता" ..waah!kya kalpa h....bahut hi sundar rachna....bdhai....
तुम्हे मजबूर किया होगा ,
ReplyDeleteमुझे मिटाने के लिए
या शायद मेरी रौशनी फीकी पड़ गयी होगी,
यकीनन सच से लगते हैं ...बहुत-बहुत अच्छी रचना ।