मै क्या कहु , सब पता है तुझे ,
मै कैसे कहू , लफ्ज ही नही मेरे पास ,
और जो लफ्ज है उनमे इतना साहस नही है
की वो बया करे उसकी शक्सियत ,
तब तू ही बता कैसे कहू ,
मै चाहता हूँ वो सब कहना जो अंदर है मेरे,
पर लफ्ज मेरे, मेरे से ही कर रहे है रुस्वाई ,
ले रहे है वो मेरा इम्तेहा ,
कैसे बताऊ अपने वो सारे राज,
अब बताऊ कैसे तुम्हे अपने दिल के वो अनछुपे राज,
मै उकेरना चाहता हूँ उन्हें कागज पर सुर्ख स्याही के रंग से,
पर वो है की यहाँ भी कर गए मुझसे घात,
शायद वो मुझे अहसां करा रहे है उस पल का ,
जब मै सब जान कर भी चुप रह जाता था ,
सब कुछ कहता था और कुछ न कह पता था ,
वो ले रहे है इम्तेहा उसी पल का ,
आज मै कहना भी चाहता हूँ तो ,
साथ नही दे रहे मेरा ,
अब मै क्या कहु , सब पता है तुझे ,
मै कैसे कहू ,लफ्ज ही नही मेरे पास ,
और जो लफ्ज है उनमे इतना साहस नही है ,
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