तुम्हारा ही कहना है
उजालो से डर लगता है
फिर तुम ही कहो
कैसे न मैं रात बन जाऊ !
बिखर जाऊ मैं शबनमी बूंदों सा
ये चाहत है गर तुम्हारी
फिर तुम ही कहो
कैसे न मैं पिघल पिघल जाऊ
टूट कर चाहू तुम्हे
चाहे जैसे धरती को रात रानी
फिर तुम ही कहो
कैसे न मैं टूट - टूट जाऊ
साथ चल सकू हर पल तुम्हारे
गर यही चाहत हैं तुम्हारी
फिर तुम ही कहो
क्यूँ न मैं तुम्हारा साया बन जाऊं
तुम चाहते हो मैं कुछ न कहू तुमसे कभी
जैसे हो हर शब्द मेरा गूंगा
फिर तुम ही कहो
क्यों न मैं अपनी ही लेखनी बन जाऊ
बीते मेरे , हर दिन, हर पल
तुम्हारी ही पनाहों में
फिर तुम ही कहो
कैसे न मैं तुम्हारी बाँहों में झूल झूल जाऊ
अमर====
बहुत खूब ... अगर उन्हें उजाला पसंद नहीं तो अंधेरा बन जाना ही बेहतर है ...
ReplyDeleteलाजवाब ...
बीते मेरे , हर दिन, हर पलwaah bahut acchi abhiwakti amrendra jee ......
ReplyDeleteबहुत सुन्दर....
ReplyDeleteतुम्हारा ही कहना है
उजालो से डर लगता है
फिर तुम ही कहो
कैसे न मैं रात बन जाऊ !
प्यारी सी रचना...
अनु
तुम्हारा ही कहना है
ReplyDeleteउजालो से डर लगता है
फिर तुम ही कहो
कैसे न मैं रात बन जाऊ !.... वाह
प्यारी सी रचना...
ReplyDeleteकैसे मन के भाव उतारूँ,
ReplyDeleteशब्दों को कैसे समझाऊँ
कई बार ऐसा होता है, जो कहना चाहो कह न पाओ... अपनी ही लेखनी बन जाओ...
ReplyDeleteतुम चाहते हो मैं कुछ न कहू तुमसे कभी
जैसे हो हर शब्द मेरा गूंगा
फिर तुम ही कहो
क्यों न मैं अपनी ही लेखनी बन जाऊ
बहुत प्यारी रचना, बधाई.
टूट कर चाहू तुम्हे
ReplyDeleteचाहे जैसे धरती को रात रानी
फिर तुम ही कहो
कैसे न मैं टूट - टूट जाऊ,,,
बहुत प्यारी उम्दा प्रस्तुति,आभार
Recent Post : अमन के लिए.
तुम्ही कहो मैं क्या क्या करूँ ? बहुत सुन्दर प्रस्तुति .
ReplyDeletelatest post"मेरे विचार मेरी अनुभूति " ब्लॉग की वर्षगांठ
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तुम चाहते हो मैं कुछ न कहू तुमसे कभी
ReplyDeleteजैसे हो हर शब्द मेरा गूंगा
फिर तुम ही कहो
क्यों न मैं अपनी ही लेखनी बन जाऊ
मन कि कसमसाहट को उकेरती सुन्दर सी प्यारी रचना
बहुत खूब :)
ReplyDelete
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि-
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल बुधवार (17-04-2013) के "साहित्य दर्पण " (चर्चा मंच-1210)
पर भी होगी! आपके अनमोल विचार दीजिये , मंच पर आपकी प्रतीक्षा है .
सूचनार्थ...सादर!
लिखना है तो लेखनी बनना पड़ेगा!
ReplyDeleteसुंदर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteलाजवाब भाई |
ReplyDeleteकभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
Tamasha-E-Zindagi
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बहुत सुन्दर.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर....बेहतरीन प्रस्तुति !!
ReplyDeleteपधारें बेटियाँ ...
उनींदी आंखों के साथ मेरा
ReplyDeleteहाथ पकड़कर, खुद से कहना
तुम मेरी जरूरत हो
तुम्हारे बिना नहीं रह सकता
तब दिल कह जाता है तुम्हें प्यार है
हमारी जरूरत है
तुम हो, तो ये दुनिया और हम हैं
तुम नहीं तो कुछ नहीं
बेजान सी लगती है दुनियाा
शायद दिल और सांसों को हो गई है
तुम्हारी आदत है
लब्जो से न सही, लेकिन
तुम्हारे पास न होने पर
एहसास होता है
हमें तुमसे प्यार है
हमारी जरूरत है...
अमरेंद्र जी, प्यार की भावनाओं को बड़ी रूमानियत से व्यक्त किया है आपने। बहुत ही प्यारी और दिल को छू लेने वाली रचना है।
धन्नयवाद।
Behad khubsurat abhivyakti. Aise hi likhte rahiye . Badhai .....
ReplyDeleteआपके ब्लॉग को ब्लॉग"दीप" में शामिल कर लिया गया है | जरुर पधारें ।
ReplyDeleteब्लॉग"दीप"