हा........, आज ,
बहुत दिनों के बाद ,
तुमसे बात करने को जी चाहा
तो सोचा पूछ लू तुमसे, की ,
तुम कैसे हो,
कुछ याद भी है तुम्हे
या सब भूल गए -----
वैसे,
तुम्हारी बातें मुझे
भूलती नहीं,
नहीं भूलते मुझे तुम्हारे वो अहसास
जो कभी सिर्फ मेरे लिये थे
नहीं भूलते तुम्हारे "वो शब्द"
जो कभी तुमने मेरे लिए गढ़े थे ----
तुम्हे जानकार आश्चर्य होगा
पर ये भी उतना ही सत्य है
जितना की तुम्हारा प्रेम,
की ,
"अब शब्द भी बूढ़े होने लगे है"
उनमे भी अब अहम आ गया है
तभी तो,
इस सांझ की बेला में,
जब मुझे तुम्हारी रौशनी चाहिए
वो भी निस्तेज से हो गए है
मैं कितनी भी कोशिश करू
तुम्हारे साथ की वो चांदनी रातें, वो जुम्बिश, वो मुलाकातें
जिनमे सिर्फ और सिर्फ हम तुम थे
उन पलो को महसूस करने की
पर इनमे अब वो बात नहो होती,------
कही ये इन शब्दों की कोई चाल तो नहीं,
या
ये इन्हें ये अहसास हो चला है
की इनके न होने से,हमारे बीच
एक मौन धारण हो जायेगा
और हम रह जायेंगे एक भित्त मात्र,
क्यूंकि अक्सर खामोशियाँ मजबूत से मजबूत रिश्तों में भी,
दरारे दाल देती है ------
तो मैं तुम्हे और तुम इन्हें (शब्दों को) बता दो
मैं कभी भी तुम्हारी या तुम्हारे शब्दों की मोहताज न रही
हमेशा से ही मेरी खामोशियाँ गुनगुनाती रही
चाहे वो तुम्हारे साथ हो या तुम्हारे बगैर
जानते हो क्यूँ , क्यूंकि ,
"शब्दहीन संवाद, शब्दीय संवाद से हमेशा ही मुखर रहा है" ------
अमर====
bahut sundar rachAna....wah
ReplyDeleteसुन्दर
ReplyDelete"शब्दहीन संवाद, शब्दीय संवाद से हमेशा ही मुखर रहा है"
ReplyDeleteबहुत उम्दा अभिव्यक्ति,सुंदर रचना,,,
RECENT POST : प्यार में दर्द है,
bahut gahan bhaw......ati sundar...
ReplyDeleteबहुत उम्दाभिव्यक्ति !
ReplyDeletelatest post तुम अनन्त
latest post कुत्ते की पूंछ
बहुत सुन्दर... मौन शब्दों की मुखरता
ReplyDeleteसुन्दर गहन भाव ...!!
ReplyDeleteबहुत अच्छी रचना ....!!
जीवन की गहन अनुभूति
विचारपूर्ण भावुक रचना
उत्कृष्ट प्रस्तुति
आग्रह है मेरे ब्लॉग में भी सम्मलित हों
ji jaroor, sadar aabhar
Deleteतो मैं तुम्हे और तुम इन्हें (शब्दों को) बता दो
ReplyDeleteमैं कभी भी तुम्हारी या तुम्हारे शब्दों की मोहताज न रही
हमेशा से ही मेरी खामोशियाँ गुनगुनाती रही
चाहे वो तुम्हारे साथ हो या तुम्हारे बगैर
जानते हो क्यूँ , क्यूंकि ,
"शब्दहीन संवाद, शब्दीय संवाद से हमेशा ही मुखर रहा ------
एक माँ के मन की भावप्रद शब्दमय होते हुए भी शब्दहीन पीड़ा ,अच्छी रचना
शब्दहीन संवाद, शब्दीय संवाद से हमेशा ही मुखर रहा है" ------bhaut kuch kah gayi apki khamosh si rahna....
ReplyDeleteमन कभी शांत कहाँ रहता है ..जुबान भले ही बंद हो लेकिन अन्दर उथल पुथल कभी बंद नहीं होती ...
बहुत बढ़िया प्रस्तुति ..
सुन्दर गहन भाव वाली रचना ....
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