कल रात से ही
आसमा में
काले घनेरे मेघो का जमावड़ा
किसके लिए -------
आज सुबह से ही
हर तरफ , हर गली
चीखते -चिल्लाते लोग,
त्राहिमाम- त्राहिमाम --------
एक -एक तिनका
तोड़कर-जोड़कर ,
अपने सपनो को संजोकर
रखा था करीने से, अलमारियों में
बीती रात की बेला
सब बहा कर ले गयी
संग अपने
अलमारियों से ,
आज तुम भी
बेचैन हो शायद
क्या तुम्हारा घर भी
कल रात की बारिश गुलजार कर गयी ?
आज एक नयी सुबह
एक नयी जगह
फिर से कुछ नए तिनके
बटोरने है एक नए आशियाने के लिए
अमर====
ReplyDeleteतोड़कर-जोड़कर ,
अपने सपनो को संजोकर
रखा था करीने से, अलमारियों में
............वाह कितना सुन्दर लिखा है आपने, कितनी सादगी, कितना प्यार भरा जवाब नहीं इस रचना का........ बहुत खूबसूरत....... !!!
ज़िंदगी का दूसरा रूप ही यही है शायद क्यूंकि इन तिनकों को बटोरते-बटोरते सारी उम्र गुज़र जाती है मगर एक ठहरा हुआ आशियाँ कभी नहीं बनता। भावपूर्ण अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteआज एक नयी सुबह
ReplyDeleteएक नयी जगह
फिर से कुछ नए तिनके
बटोरने है एक नए आशियाने के लिए very nice...
बहुत खूब..वाह..
ReplyDeleteवाह क्या गजब का चित्रण किया है समूचे वातावरण का
ReplyDeleteबधाई
नयी सुबह,नयी तलाश,नए तिनके,नया आशियाना सुन्दर चित्रण
ReplyDeleteहर नई सुबह फिर से जीने की कोशिश, यही ज़िंदगी है... बधाई.
ReplyDeleteमुंबई का मंज़र याद आ गया ...जब बारिश ने किसी को नहीं बख्शा था
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