देव !
आज तुम
कोशिश भी न करना
इन्हें
(समय के घाव), छूने
की -------
निकालने
की तो,
सोचना भी
नहीं
बहुत
तकलीफ होगी
-----तुम्हे
भी और मुझे भी,
बड़े ही
जतन से,
सहेज कर
रखा है इन्हें मैंने -------
अपने ही
भीतर,
आत्मसात
सा कर लिया है,
क्यूंकि, अब,
ये मुझे
नहीं जीते,
मैं
इन्हें जीती हूँ
हाँ सच !
इन्हें ही
तो ----
-------जी
रही हूँ मैं
वैसे, तुम कैसे हो ,------
कैसे आज
इधर से आना हुआ
-----------बस
यूँ ही सर्द दिनों में
खिली धुप
सेंकने का मन हुआ ----
या बीते
दिनों की जुम्बिश
तुम्हे
इधर खीच लायी -----
कुछ बोलते
क्यूँ नहीं,
देव !
क्या बात
है ---
इतनी
ख़ामोशी भी अच्छी नहीं,
जानते हो,
ऐसी ही एक
खामोश रात
मेरा सब
छीन ले गयी थी, मुझसे
जिसके बाद
से मैं डरने लगी हु तनहाइयों से
अब मैं भी
जानती हूँ, और
तुम भी
की हो
सकता है, तुम मुझे
और कुछ दे भी दो
पर तन्हाई
नहीं दे सकते
और हाँ,
सुनो, देव !
तुम्हारे
जाने के बाद
एक तुम ही
नहीं थे,
जिसने
मुझसे मुंह मोड़ लिया था,
यहाँ सभी
मुझसे खफा हो गये थे
क्या मेरे
अपने और क्या मेरे जज्बात,
वो बात ही
नहीं करते थे मुझसे
कुछ सुनना
ही नहीं चाहते थे,
यहाँ तक
की मेरा करुन क्रंदन भी ,
रोना चाहू
तो रोने नहीं देते
हसना चाहू
तो वो हसने नहीं देते
जैसे चिढ़ा
रहे हो मुझे,
मैंने भी
रोना –हसना सब
छोड़ दिया
जीती रही
शुन्य में
जागती रही
बंद आँखों से ,
देखती रही
पाताल से
भी गहरे – गहरे
सपने,
और एक दिन
मैंने भी
चासनी के धागों में,
तुम्हारी
यादों को लपेट केर
सहेज कर
रख दिया सदा के लिए………
क्यूंकि, अब,
सहेज कर
रखी हुई चीजे
ज्यादा सकूं
देती है
जैसे
तुम्हारी यादें ====
अमर ====
...बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!
ReplyDeleteदिये उसी ने, वही भरेगा,
ReplyDeleteघाव समय का यही करेगा।
और एक दिन
ReplyDeleteमैंने भी चासनी के धागों में,
तुम्हारी यादों को लपेट केर
सहेज कर रख दिया सदा के लिए………
क्यूंकि, अब,
सहेज कर रखी हुई चीजे
ज्यादा सकूं देती है
जैसे तुम्हारी यादें ==सुन्दर अभिव्यक्ति
New post बिल पास हो गया
New postअनुभूति : चाल,चलन,चरित्र
क्यूंकि, अब,
ReplyDeleteसहेज कर रखी हुई चीजे
ज्यादा सकूं देती है,,,,
जैसे तुम्हारी यादें ,,,,बेहतरीन उम्दा अभिव्यक्ति ,,,,
RECENT POST शहीदों की याद में,
प्रभावशाली प्रस्तुती....
ReplyDeleteबहुत बढ़िया..प्रभावशाली प्रस्तुती...
ReplyDeleteबढ़िया प्रस्तुति हेतु बधाई
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति....
ReplyDeleteकोमल से एहसास लिए..
अनु
क्यूंकि, अब,
ReplyDeleteसहेज कर रखी हुई चीजे
ज्यादा सकूं देती है
जैसे तुम्हारी यादें ===अनुपा, भाव संयोजन से सजी उम्दा प्रस्तुति...शुभकामनायें
अनुपम * भाव संयोजन...ऊपर स्पेलिंग गलत हो गयी जल्द बाज़ी में :)
ReplyDeleteसहेज तो दिया पर क्या यादों को भुलाना आसान होगा ...
ReplyDeleteवाह! बहुत सुन्दर...
ReplyDeletebahut khoob,,, Amrendra ji
ReplyDeleteवाह!
ReplyDeleteआपकी यह प्रविष्टि कल दिनांक 04-02-2013 को चर्चामंच-1145 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ
आखरी ४ पंक्तिया लाजवाब है बंधू | बहुत मार्मिक और मन में टीस उत्पन्न करती भावुक कविता | कायल हो गया आपकी लेखनी का | आभार
ReplyDeleteTamasha-E-Zindagi
Tamashaezindagi FB Page
जीवन का फ़लसफ़ा!
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी प्रस्तुति ...
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत अहसास ...एक नारी मन को पढ़ने में सक्षम हो तुम पर कभी कभी पुरुष मन को भी लिखा करो ,उसकी सोच को जो कि तुम बहुत अच्छे से लिख सकते हो
ReplyDeleteसुंदर भाव ...बहुत सुंदर रचना ...
ReplyDeleteक्यूंकि, अब,
ReplyDeleteसहेज कर रखी हुई चीजे
ज्यादा सकूं देती है
जैसे तुम्हारी यादें
*****बेहतरीन उम्दा