"एक तुम्हारे,
न
कह देने भर से तो सब ख़त्म नहीं हो जाता
एक तुम ही तो नहीं
जिसने रिश्तों को जिया
मैंने भी तो ,
तुम्हारे हर सुख-दुःख में,
तुम्हारा साथ दिया,
स्थितियां कैसी भी रही हों ,
कभी उफ़ तक न की,
तुम्हारे साथ बराबर की भागीदार बनी रही
हाँ सच सुना तुमने
"बराबर की भागीदार"
आज बराबरी की बात कह दी,
तो तुम इतना आँख भौं सिकोड़ रहे हो
तब तो कोई ऐतराज न था तुम्हे
जब मंत्र पढ़े गए थे हमारे दरमियाँ
तब तो हमने-तुमने मिलकर कसमें खायी थी
कैसी भी परिस्थति हो
रिश्तों को हम मिल जुलकर निभाएंगे
हम मिलकर सामना करेंगे
फिर आज ऐसा क्या हुआ,
जो तुम दूर जाने को विवश हो गए
शायद
तुम हार गए हों ?
उकता गए हो, मुझसे
या तुम्हारी पुरुष पाशविक प्रकर्ति जाग गयी है
या फिर दूर जाने का बहाना करके,
अपनी कायरता को छुपाना चाहते हो,
तुम भूल गए हो शायद,
की अब तुम्हारी जिंदगी सिर्फ तुम्हारी ही नहीं
मेरे भी जीने का एकमात्र सहारा है
फिर भी गर जाना ही चाहते हो
तो,
जाओ चले जाओ, जहा जाना हो तुम्हे
तुम मुझे, न चाहो, न सही
इसमें तुम्हारा दोष भी नहीं
और तुम्हे दोष देने से फायदा भी क्या
वैसे भी तुम इस "दम्भी पुरुष समाज" के,
बजबजाते हुए एक तुच्छ निमित्त मात्र हो
और
अगर मैं तुम पर दोषारोपण करती भी हूँ
तो ये मेरा, अपने उपर ही लगाया हुआ एक घिनौना इल्जाम होगा,
तुम तो कभी इतने समझदार थे ही नहीं
की प्रेम की मौन भाषा को समझ भी सको
फिर तुमसे क्या कहना
जाओ चले जाओ :(
अमर ====
अधूरे मन,जिंदगी और प्रेम की तड़प ...बहुत खूब
ReplyDeleteवैसे भी तुम इस "दम्भी पुरुष समाज" के,
ReplyDeleteबजबजाते हुए एक तुच्छ निमित्त मात्र हो
पुरुष की लेखनी से निकले शब्द ,आश्चर्यचकित हो गई :)
speechless.......
ReplyDeleteकितने पनघट जी डाले हैं पानी ने,
ReplyDeleteकितने भाव छिपाये अपनी बानी ने।
जाओ चले जाओ, जहा जाना हो तुम्हे
ReplyDeleteतुम मुझे, न चाहो, न सही
इसमें तुम्हारा दोष भी नहीं
और तुम्हे दोष देने से फायदा भी क्या
वैसे भी तुम इस "दम्भी पुरुष समाज" के,
बजबजाते हुए एक तुच्छ निमित्त मात्र हो
VERY NICE EMOTIONS
तुम हार गए हों ?
ReplyDeleteउकता गए हो, मुझसे
या तुम्हारी पुरुष पाशविक प्रकर्ति जाग गयी है
.......गहरे अनुभव की बात लिखी है !
बेहतरीन प्रस्तुति..सहेज कर रखनी पड़ेगी।..आभार।
ReplyDeleteप्रेम की मौन भाषा को समझ भी सको
ReplyDeleteफिर तुमसे क्या कहना
... अनुपम भाव संयोजित किये हैं आपने
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteअनुपम भाव लिए उम्दा संग्रहणीय प्रस्तुति,,,बधाई
ReplyDeleterecent post: मातृभूमि,
prabhwshali.....
ReplyDeletevery very niceee.....stri kay man ki baat apne aise likhi ki sach mey ascharya hota hai
ReplyDeleteजो अपना था ही नहीं उसके लिए कैसी तड़प... मन्त्रों के उच्चारण से कोई अपना बनता कहाँ है... नारी मन का मार्मिक चित्रण, शुभकामनाएँ.
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