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Thursday, December 13, 2012

मैं एक औरत हूँ


सच,
यही बात है न, की,
मैं एक औरत हूँ
बस यही कसूर है मेरा

बस इसीलिए
मेरा सच्चा स्वाभिमान
तुम्हारे झूठे अभिमान
के आगे न टिक सका

मुझे झुकना ही पड़ेगा
तुम्हारे
झूठे दंभ और अहंकार के आगे

सदियों से यही होता आया
सीता ने राम के लिए
तो
राधा ने श्याम के लिए
क्या कुछ न सहा

फिर मेरी क्या बिसात
तुम्हारे आगे,

फिर भी
हर बार,
बार-बार,
आना ही होगा
तुम्हारे आगोश में

यह जानकार भी
ये कुछ पल का चैन
जिंदगी भर का सकूं छीन लेगा

मैं एक औरत हूँ न
बस
झुकना ही होगा
कभी तुम्हारे तो कभी
तुम्हारे झूठे स्वाभिमान के आगे ----------

अमर=====
 

13 comments:

  1. बेहतरीन अभिव्‍यक्ति

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  2. बहुत प्रबल भाव ....
    सुंदर रचना ...
    शुभकामनायें ....

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  3. एक औरत हूँ न
    बस
    झुकना ही होगा
    कभी तुम्हारे तो कभी
    तुम्हारे झूठे स्वाभिमान के आगे ----------
    एक सच ....:(((((((
    औरत की थेथरई :((((((( :((((((

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  4. सुन्दर....
    बहुत बहुत सुन्दर.....

    अनु

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  5. औरत का सारा सच जो कभी कह नहीं पाती आपने कह दिया, शुभकामनाएँ.

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  6. वाह बहुत खूब
    हर अहसास को शब्द दे दिए :)

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  7. सच,

    यही बात है न, की,........कि .........


    मैं एक औरत हूँ

    बस यही कसूर है मेरा।।।।।।।क़ुसूर .........

    यह जानकार भी


    ये कुछ पल का चैन


    जिंदगी भर का सकूं छीन लेगा।।।।।।।।सुकूँ .....

    बहुत बढ़िया रचना है बधाई .....

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  8. बहुत खूब,,,अहसासों की उम्दा अभिव्यक्ति, बधाई अमरेन्द्र जी,,

    recent post हमको रखवालो ने लूटा

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  9. अलग हैं पर प्रकृति के अभिन्न अंग हैं।

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  10. अम्रेंद्रजी .....अच्छा लगा पढ़कर ...:)

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  11. सुन्दर रचना...अमरेन्द्र जी बधाई !!

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