"मैं कोई किताब नहीं,
जिसे जब चाहोगे, पढ़ लोगे तुम
मैं कोई असरार नहीं,
जिसे जब चाहोगे, समझ लोगे तुम ,
मैं हु, तुम्हारे दिल की धड़कन,
जिसे सुनना भी चाहो, तो न सुन सकोगे तुम
कितना ही शोर, हो, तुम्हारे चारो तरफ
न सुन सकोगे तुम ,
कितनी ही उजास हो तुम्हारी रातें,
न सो सकोगे तुम,
पल भर में खीच लायेंगी,
तुम्हे हमारी यादें,
एक पल भी बगैर हमारे,
न रह सकोगे तुम,
मैं हूँ समेटे, अपने दिल में प्यार का दरिया, तुम्हारे लिए
किसी रोज लौटा, तो बहने से, खुद को, न रोक सकोगे तुम"
अमर====
जिसे जब चाहोगे, पढ़ लोगे तुम
मैं कोई असरार नहीं,
जिसे जब चाहोगे, समझ लोगे तुम ,
मैं हु, तुम्हारे दिल की धड़कन,
जिसे सुनना भी चाहो, तो न सुन सकोगे तुम
कितना ही शोर, हो, तुम्हारे चारो तरफ
न सुन सकोगे तुम ,
कितनी ही उजास हो तुम्हारी रातें,
न सो सकोगे तुम,
पल भर में खीच लायेंगी,
तुम्हे हमारी यादें,
एक पल भी बगैर हमारे,
न रह सकोगे तुम,
मैं हूँ समेटे, अपने दिल में प्यार का दरिया, तुम्हारे लिए
किसी रोज लौटा, तो बहने से, खुद को, न रोक सकोगे तुम"
अमर====
किसी रोज लौटा, तो बहने से, खुद को, न रोक सकोगे तुम"
ReplyDeleteवाह ... बेहतरीन भाव लिये उत्कृष्ट लेखन
gehre bhav ki sunder rachna............
ReplyDeleteबेहतरीन पंक्तिया है मन को छू लेने वाली
ReplyDeleteमैं हूँ समेटे, अपने दिल में प्यार का दरिया, तुम्हारे लिए
ReplyDeleteकिसी रोज लौटा, तो बहने से, खुद को, न रोक सकोगे तुम"
बहुत सुंदर भावमय रचना,,,
recent post : प्यार न भूले,,,
बहुत उम्दा
ReplyDeleteमैं हूँ समेटे, अपने दिल में प्यार का दरिया, तुम्हारे लिए
ReplyDeleteकिसी रोज लौटा, तो बहने से, खुद को, न रोक सकोगे तुम"....... दिल को छू हर एक पंक्ति....
संवाद साधना होता है..बहुत सुन्दर कविता..
ReplyDeleteबेहतरीन.....
ReplyDeleteअच्छी कविता है ।
ReplyDeleteबहुत ही उम्दा
ReplyDeleteमामूली से बदलाव के बाद तुम्हारी कविता का रूप कुछ इस तरह होना चाहिए ..............
ReplyDelete"मैं कोई किताब नहीं,
जिसे जब चाहोगे, पढ़ लोगे तुम
मैं कोई असरार नहीं,
जिसे जब चाहोगे, समझ लोगे तुम ,
मैं हूँ , तुम्हारे दिल की धड़कन,
जिसे जब भी सुनना भी चाहो, तो सुन सकोगे तुम
कितना ही शोर, हो, तुम्हारे चारो तरफ
फिर सुन सकोगे तुम ,
कितनी ही उजास हो तुम्हारी रातें,
न सो सकोगे तुम,
बिने सुने मेरी शांत वाणी को
पल भर में खीच लायेंगी तुम्हे ,
हमारे करीब ,हमारी ही यादें,
एक पल भी बगैर हमारे,
न रह सकोगे तुम,
मैं हूँ समेटे, अपने दिल में प्यार का दरिया, तुम्हारे लिए
किसी रोज लौटा, तो बहने से, खुद को, न रोक सकोगे तुम"
अमर====
Shukriya di aapka ashirwad mil gaya, ab nikher gayi hai rachna
ReplyDeletehttp://www.parikalpnaa.com/2012/12/blog-post_4920.html
ReplyDelete