कल रात
हुई
जोर की बारिश
बाद, तुम्हारे जाने के,
तो डर लगा !
आज घर
में
फिर, चूल्हा न जला
गीली लकड़ियों से
तो डर लगा !
वो भूखे बैठे,
पेट पकडे
कुलबुलाते नंगे
मेरे बच्चे,
तो डर लगा !
तुम्हारे आने की आहट
सुनी, कई बार मैंने
मगर
तुम न आये
तो डर लगा !
सांझ ढले
सबसे छिपते छिपाते
मै बेचने निकली
तुम्हारे घर की इज्जत
तो डर लगा !
अमर ****
कितनी डराती है यह दुनिया।
ReplyDeleteSach Kha aapne praveen Ji, Aur akele me to ye khane ko daudti hai ********
Deleteमन के भावों को सहज ही व्यक्त करती ...उत्कृष्ट अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteShukriya सदा ji...aapka sneh paker man abhibhut ho gya
DeleteSundar kavita.
ReplyDeleteSangita ji shukriya
Deleteडर हावी रहता है मनो मस्तिष्क पर ..
ReplyDeleteअच्छी भावाभिव्यक्ति !!
Shukriya Sangita Puri Ji
Deleteजैसे डर हो अपना सगा |
ReplyDeleteजो बार बार लगा |
जरा हिम्मत जगा --
आज की नारी बड़ी हिम्मतवाली ||
Ravi ji sach kha aapne shukriya
Deleteसामना हुआ
ReplyDeleteजब किसी
कड़वे सच से
तो डर लगा................
भावपूर्ण रचना..
Shukriya ji
DeleteBAHUT SUNDAR .. AMR JEE !
ReplyDeleteMnagla ji Shukriya Yaha Tak aane ke liye
Deleteअच्छी भावाभिव्यक्ति .
ReplyDeleteKunwar ji aabhar
Deleteसांझ ढले
ReplyDeleteसबसे छिपते छिपाते
मै बेचने निकली
तुम्हारे घर की इज्जत
तो डर लगा !
....बहुत मर्मस्पर्शी और भावमयी प्रस्तुति...
Kailash Sharma ji Hardik abhinandan & aabhar
Deleteमर्मस्पर्शी...उत्कृष्ट अभिव्यक्ति ..
ReplyDeleteSameer ji Shukriya apna mahtvpurn samay dene ke liye
Deleteसांझ ढले
ReplyDeleteसबसे छिपते छिपाते
मै बेचने निकली
तुम्हारे घर की इज्जत
तो डर लगा !
बहुत सुंदर भाव अभिव्यक्ति, रचना,......
MY RESENT POST... फुहार....: रिश्वत लिए वगैर....
Shukriya dheerendra ji
Deleteबहुत भावप्रणव अभिव्यक्ति!
ReplyDeleteShastri ji Shukriya
Deleteटचिंग...भूख से बड़ा डर कोई नहीं...और ये जो ना कराये...
ReplyDeleteSach Kha aapne Vaanbhatt ji
Deleteसत्य को कहती संवेदनशील रचना
ReplyDeleteSangeeta Swaroop ji Shukriya
Deletesach aur bas sach kehti rachna...badhai
ReplyDeleteShukriya Rewa ji
Deletebhavpoorn rachna
ReplyDeleteShukriya
Deleteयह डर- कितना त्रास्दाई , कितना बेसहारा
ReplyDeleteRashmi Prabha ji bahut bahut shukriya hausla afjai ke liye....
Deleteभावनाओं का बहुत सुंदर चित्रण ....
ReplyDeleteबधाई.
Dr (Miss) Sharad Singh ji hardik abhinandan
Deleteशश्श्श्स डरना मना है....क्योंकि डर के आगे जीत है .........
ReplyDeleteआभार उपरोक्त पोस्ट हेतु.
Bhakuni ji shukriya :)
Deletevery touchinf.
ReplyDeleteDr.NISHA MAHARANA ji shukriya
Deleteबहुत संवेदनशील रचना है....
ReplyDeleteReena Maurya ji shukriyan yaha tak aane ke liye
Deleteसुन्दर प्रस्तुति.... बहुत बहुत बधाई...
ReplyDeleteChaturvedi ji aapka aana hame bahut accha lga.........aabhar
Deleteबहुत खूब ... दरअसल इंसान की फितरत ही डरने की हो गयी है आज ... कुछ हालात ही ऐसे हो गए हैं ... भाव पूर्ण रचना है ...
ReplyDeleteShukriya D. Naswa Ji .......aapka sneh mil gya rachna ki sarthakta siddh ho gyi
Deletekitne tarah se dar gher leti hai......behad bhawpoorn.
ReplyDeleteMridula ji shukriya
Deletebehtareen rachna Amrendra ji,apne aap se bahut kuch baya'n ker gayee....gahan soch ko darshati..........
ReplyDeletehridyanubhuti ji shukriya
Deleteवाह बहुत खूब ...गरीबी की रुपरेखा का चित्रण
ReplyDeleteShukriya Di
Deleteगरीबी का दर्द और एक असहाय नारी का बच्चों को जिंदा रखने के लिए किया गया संघर्ष आप बखूबी अभिव्यक्त कर पाये हैं। गरीब की हर सांस डरते-डरते ही तो कटती है।
ReplyDelete..अच्छे प्रयास के लिए बहुत बधाई।
devendra pandey ji bahut bahut shukriya ........aise hi aap sneh banaye rahiye ...........
Deleteatisundar gareebi aur asahaay avastha dono ka bakhoobi chitran kiya hai.
ReplyDeleteRajesh Kumari ji hardik abhinandan
Deleteआपका हर जगह स्वागत है।
ReplyDeleteअच्छी रचना। और लिखो।
और खूब लिखो।
आलोचक और आलोचना की
चिन्ता किये बिना।
आनन्द विश्वास
Anand Vishwas ji swagat hai aapka..........aapka anusaran kerta rahunga****
Deleteसुन्दर अभिव्यक्ति .
ReplyDeleteडर का स्थायीभाव, अपने लिये नहीं अपनों के लिये ,कैसी विवशता है !
Pratibha Saxena ji hardik abhinandan
Deleteडर के आवरण में छिपी व्यथा का सुन्दर शब्द-चित्र!
ReplyDeleteDr. Kapoor ji rachna ka maan rakhne ke liye hardik abhinadan
Deleteकडवे सत्य का निरुपण करती सशक्त अभिव्यक्ति ………डर के माध्यम से जीवन का यथार्थ बयाँ किया है।
ReplyDeleteVandna Ji shukriya
Deleteअमरेन्द्र जी नमस्कार !
ReplyDeleteपहली बार इस मंच पर हूँ ! बहुत बहुत शुक्रिया आपका जो आपने मुझे यहाँ आमंत्रित किया ! आपकी कविता से शायद आपको दर लगा हो, किन्तु मुझे प्रसन्नता हुई क्योंकि मुझे इस मंच पर बहुत खूबसूरत रचना पढने को मिली ! वाह
Yogi ji hardik swagat hai
Deleteगहरे एहसास लिए सुंदर कविता. . बिलकुल सच बयां करती हुई.
ReplyDeleteShukriya Upendra ji
Deletedarpok duniya ne hame bhi darpok bana diya.......!
ReplyDeletebehtareen..
मर्मस्पर्शी... भाव पूर्ण रचना...बहुत बधाई...
ReplyDeletebahut khoob amar ji...
ReplyDeletesarthak prastuti...