Followers

Labels

Powered By Blogger

Monday, March 19, 2012

तो डर लगा !


कल रात
हुई 
जोर की बारिश 
बाद, तुम्हारे जाने के, 
तो डर लगा !

आज घर  
में
फिर, चूल्हा न जला 
गीली लकड़ियों से 
तो डर लगा !

वो भूखे बैठे,
पेट पकडे 
कुलबुलाते नंगे 
मेरे बच्चे,  
तो डर लगा !

तुम्हारे आने की आहट
सुनी, कई बार मैंने 
मगर 
तुम न आये 
तो डर लगा !

सांझ ढले 
सबसे छिपते छिपाते 
मै बेचने निकली 
तुम्हारे घर की इज्जत 
तो डर लगा !
अमर ****

71 comments:

  1. कितनी डराती है यह दुनिया।

    ReplyDelete
    Replies
    1. Sach Kha aapne praveen Ji, Aur akele me to ye khane ko daudti hai ********

      Delete
  2. मन के भावों को सहज ही व्‍यक्‍त करती ...उत्‍कृष्‍ट अभिव्‍यक्ति ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. Shukriya सदा ji...aapka sneh paker man abhibhut ho gya

      Delete
  3. डर हावी रहता है मनो मस्तिष्‍क पर ..
    अच्‍छी भावाभिव्‍यक्ति !!

    ReplyDelete
  4. जैसे डर हो अपना सगा |
    जो बार बार लगा |
    जरा हिम्मत जगा --
    आज की नारी बड़ी हिम्मतवाली ||

    ReplyDelete
  5. सामना हुआ
    जब किसी
    कड़वे सच से
    तो डर लगा................

    भावपूर्ण रचना..

    ReplyDelete
  6. अच्‍छी भावाभिव्‍यक्ति .

    ReplyDelete
  7. सांझ ढले
    सबसे छिपते छिपाते
    मै बेचने निकली
    तुम्हारे घर की इज्जत
    तो डर लगा !

    ....बहुत मर्मस्पर्शी और भावमयी प्रस्तुति...

    ReplyDelete
  8. मर्मस्पर्शी...उत्‍कृष्‍ट अभिव्‍यक्ति ..

    ReplyDelete
    Replies
    1. Sameer ji Shukriya apna mahtvpurn samay dene ke liye

      Delete
  9. सांझ ढले
    सबसे छिपते छिपाते
    मै बेचने निकली
    तुम्हारे घर की इज्जत
    तो डर लगा !
    बहुत सुंदर भाव अभिव्यक्ति, रचना,......


    MY RESENT POST... फुहार....: रिश्वत लिए वगैर....

    ReplyDelete
  10. टचिंग...भूख से बड़ा डर कोई नहीं...और ये जो ना कराये...

    ReplyDelete
  11. सत्य को कहती संवेदनशील रचना

    ReplyDelete
  12. sach aur bas sach kehti rachna...badhai

    ReplyDelete
  13. यह डर- कितना त्रास्दाई , कितना बेसहारा

    ReplyDelete
    Replies
    1. Rashmi Prabha ji bahut bahut shukriya hausla afjai ke liye....

      Delete
  14. भावनाओं का बहुत सुंदर चित्रण ....
    बधाई.

    ReplyDelete
  15. शश्श्श्स डरना मना है....क्योंकि डर के आगे जीत है .........
    आभार उपरोक्त पोस्ट हेतु.

    ReplyDelete
  16. बहुत संवेदनशील रचना है....

    ReplyDelete
  17. सुन्दर प्रस्तुति.... बहुत बहुत बधाई...

    ReplyDelete
    Replies
    1. Chaturvedi ji aapka aana hame bahut accha lga.........aabhar

      Delete
  18. बहुत खूब ... दरअसल इंसान की फितरत ही डरने की हो गयी है आज ... कुछ हालात ही ऐसे हो गए हैं ... भाव पूर्ण रचना है ...

    ReplyDelete
    Replies
    1. Shukriya D. Naswa Ji .......aapka sneh mil gya rachna ki sarthakta siddh ho gyi

      Delete
  19. kitne tarah se dar gher leti hai......behad bhawpoorn.

    ReplyDelete
  20. behtareen rachna Amrendra ji,apne aap se bahut kuch baya'n ker gayee....gahan soch ko darshati..........

    ReplyDelete
  21. वाह बहुत खूब ...गरीबी की रुपरेखा का चित्रण

    ReplyDelete
  22. गरीबी का दर्द और एक असहाय नारी का बच्चों को जिंदा रखने के लिए किया गया संघर्ष आप बखूबी अभिव्यक्त कर पाये हैं। गरीब की हर सांस डरते-डरते ही तो कटती है।
    ..अच्छे प्रयास के लिए बहुत बधाई।

    ReplyDelete
    Replies
    1. devendra pandey ji bahut bahut shukriya ........aise hi aap sneh banaye rahiye ...........

      Delete
  23. atisundar gareebi aur asahaay avastha dono ka bakhoobi chitran kiya hai.

    ReplyDelete
  24. आपका हर जगह स्वागत है।
    अच्छी रचना। और लिखो।
    और खूब लिखो।
    आलोचक और आलोचना की
    चिन्ता किये बिना।

    आनन्द विश्वास

    ReplyDelete
    Replies
    1. Anand Vishwas ji swagat hai aapka..........aapka anusaran kerta rahunga****

      Delete
  25. सुन्दर अभिव्यक्ति .
    डर का स्थायीभाव, अपने लिये नहीं अपनों के लिये ,कैसी विवशता है !

    ReplyDelete
  26. डर के आवरण में छिपी व्यथा का सुन्दर शब्द-चित्र!

    ReplyDelete
    Replies
    1. Dr. Kapoor ji rachna ka maan rakhne ke liye hardik abhinadan

      Delete
  27. कडवे सत्य का निरुपण करती सशक्त अभिव्यक्ति ………डर के माध्यम से जीवन का यथार्थ बयाँ किया है।

    ReplyDelete
  28. अमरेन्द्र जी नमस्कार !
    पहली बार इस मंच पर हूँ ! बहुत बहुत शुक्रिया आपका जो आपने मुझे यहाँ आमंत्रित किया ! आपकी कविता से शायद आपको दर लगा हो, किन्तु मुझे प्रसन्नता हुई क्योंकि मुझे इस मंच पर बहुत खूबसूरत रचना पढने को मिली ! वाह

    ReplyDelete
  29. गहरे एहसास लिए सुंदर कविता. . बिलकुल सच बयां करती हुई.

    ReplyDelete
  30. darpok duniya ne hame bhi darpok bana diya.......!
    behtareen..

    ReplyDelete
  31. मर्मस्पर्शी... भाव पूर्ण रचना...बहुत बधाई...

    ReplyDelete
  32. bahut khoob amar ji...
    sarthak prastuti...

    ReplyDelete