आज उनसे मिलने की ऋतू आयी है
न जाने कितने बरसातो के गुजर जाने के बाद ,
वो आये , मिले तो भी बरसात है मेरे लिए
वो मिले और चले जाये तो भी बरसात है मेरे लिए ,
बरसात का मौसम मुझे कुछ यु भाया है
बिन मौसम ही मुझे भिगाया है ,
आज भी कुछ ऐसा ही आलम है
ऋतू है मिलन की और बेला है बारिश की ,
समझ में आता नहीं की ये बारिश क्यू है
उनसे मिलने की खुशी है या उनसे फिर बिछड़ने का गम ,
बिन मौसम की बारिश से अब डर सा लगने लगा है ,
कही बह न जाऊ इस बारिश में,
ये लगने लगा है ,
आज फिर उनसे मिलने की ऋतू आयी है
थोडी ही सही इसी बहाने बारिश तो आयी है,
कई दिनों से पड़ा था सुखा इस झील में
आज फिर एक नयी लहर आयी है............
No comments:
Post a Comment