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Monday, August 6, 2012


हमारे रिश्ते, 
जैसे लोथड़े हो मांस के 
खून से सने, लथपथ....
बिखरे, 
सड़क किनारे ...
 
जिन्हें देखते, हम
अपनी ही बेबस आँखों से 
बहता हुआ......

वही कुछ दूर पे बैठा 
हाफंता,
इक शिकारी कुत्ता ,
जीभ को बाहर निकाले
तरसता भोग -विलासिता को .......

बचे है 
पिंजर मात्र,
हमारे रिश्तो के .......
जिनमे अब भी
कही-कहीं,
लटके  है 
हमारे विश्वास के लोथड़े .....

जिन्हें कुरेद कुरेद के नोचने को, 
बेताब,
बैठा कौवा 
कांव-कांव करता ,
इक सूखी डाली पर...... 

दिलो में अभी भी ज़मी गर्द 
जिन बेजान रिश्तो की, 
उन्हें भी ,   
चट कर जाना चाहता है,
दीमक,
अपनी कंदराओ के लिए 

कहाँ खो गए है 
हम इन रिश्तो के जंगल में 
जहा सब दिखावा है 
छुई-मुई सी है जिनकी दीवारें 
जो मुरझाती है अहसास मात्र 
छुवन से ही ....

कोई आये बीते दिनों से 
जहाँ, 
आज भी इक आवाज काफी है 
अंधेरो में उजाले के लिए 

दौड़ पड़ते है रिश्तो के 
बियाबान - घनेरे जंगल 
लेकर उम्मीदों की मशाले
कैसा भी हो मायूसी 
पल भर में ही हो जाता है उजाला 

ये कैसे रिश्ते है जो 
छूटते  भी नहीं और टूटते भी नहीं .........


अमर =====

13 comments:

  1. ये कैसे रिश्ते है जो
    छूटते भी नहीं और टूटते भी नहीं .........
    बेहतरीन भाव

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  2. यही तो रिश्ते हें कि जिन्हें चाह कर छोड़ा नहीं जा सकता है और आज के युग में इनमें चाह कर भी जान नहीं रह गयी है, सब कुछ चाहते हें और जो नहीं मिलता है तो उनसे दूर चले जाते हें बगैर ये जाने कि जो नहीं मिल रहा है उसके पीछे वजह क्या है? फिर भी तोड़ नहीं पाते हें बस छोड़ देते हें. बहुत सुंदर ढंग से रिश्तों के वर्तमान स्वरूप को परिभाषित किया है.

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  3. ये कैसे रिश्ते है जो
    छूटते भी नहीं और टूटते भी नहीं ...

    जो रिश्ते दिल से जुड़े होते है वो जल्दी छूटते टूटते नही है,,,,बेहतरीन प्रस्तुति,,,,

    RECENT POST...: जिन्दगी,,,,

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  4. ओह!!!
    सशक्त अभिव्यक्ति...
    कुछ उथल-पुथल सी मचा गयी ज़ेहन में...

    सादर
    अनु

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  5. संबंध स्थायी प्रभाव डालते हैं, या तो बहुत ऊपर ले जाते हैं या गहरे में छोड़ जाते हैं।

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  6. प्रभावी और अर्थ पूर्ण ....

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  7. kaafee gaharaee hai is pad me. Zindagee kee haqiqut ko aaina dikhaya gaya hai. I appriciate it. Keep it up, Amarendra!

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  8. रिश्तों में उम्मीद हो तो साँसें रहती हैं ... वर्ना जीना दुश्वार हो जाता है ..
    गहरी रचना ...

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  9. कहाँ खो गए है
    हम इन रिश्तो के जंगल में
    जहा सब दिखावा है
    छुई-मुई सी है जिनकी दीवारें
    जो मुरझाती है अहसास मात्र
    छुवन से ही ....

    ReplyDelete
  10. दौड़ पड़ते है रिश्तो के
    बियाबान - घनेरे जंगल
    लेकर उम्मीदों की मशाले
    कैसा भी हो मायूसी
    पल भर में ही हो जाता है उजाला

    ये कैसे रिश्ते है जो
    छूटते भी नहीं और टूटते भी नहीं .........waah ...

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  11. वाह... उम्दा, बेहतरीन अभिव्यक्ति...बहुत बहुत बधाई...

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  12. रिश्तोँ के बिना भी जीवन अधूरा है ।
    सून्दर काव्य रचना.....।

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  13. दौड़ पड़ते है रिश्तो के
    बियाबान - घनेरे जंगल
    लेकर उम्मीदों की मशाले
    कैसा भी हो मायूसी
    पल भर में ही हो जाता है उजाला

    ये कैसे रिश्ते है जो
    छूटते भी नहीं और टूटते भी नहीं .........
    sunder bhav
    rachana

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