आज सोचकर निकला हू घर से
या तो वो मिलेंगे मुझे
या मै मिल जाऊंगा उनमे ...........
न जाने कितने दिन से
न जाने कब से
शायद सदिया बीती या दिन बीते
अब ये भी याद नही............
वो कह गये थे
आऊंगा सांझ ढले ही
न जाने कितनी शाम ढल गयी
न जाने कितने दिन गुजर गये
फिर भी वो शाम न आयी
जिसका था मुझे इंतेजार
वैसे ही जैसे राह भटके पथिक को पथ का
तेज धार को किनारे का ,टकरा के मिट जाने का
मेरे जीवन कि तरह..........
काश वो आ जाते ........
अब तो...............
राह देखते देखते आंखो मे नमी भी न रही
शायेद वो मिले तो वो हसी भी न रही
फिर भी है इंतेजार उनका
एक पल को ही मिल जाये वो ....
मुलाकात न हो न सही दूर से ही निकल जाये वो
बस एक बार मेरी आंखो से गुजर जाये ......
चैन मुझे मिले न मिले न सही
मेरी रूह को आराम तो मिल जाये .....
यही सोचकर आज निकला हू घर से
या तो वो मिलेंगे मुझे
या मै मिल जाऊंगा उनमे ...
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