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Thursday, November 26, 2009

इंतेजार सिर्फ इंतेजार


आज सोचकर निकला हू घर से 
या तो वो मिलेंगे मुझे 
या मै मिल जाऊंगा उनमे ...........

न जाने कितने दिन से 
न जाने कब से 
शायद सदिया बीती या दिन बीते
अब ये भी याद नही............

वो कह गये थे   
आऊंगा सांझ ढले ही
न जाने कितनी शाम ढल गयी 
न  जाने  कितने  दिन गुजर  गये
फिर भी वो शाम न आयी 
जिसका था मुझे इंतेजार 
वैसे ही जैसे राह भटके पथिक को पथ का 
तेज धार को किनारे का ,टकरा के मिट जाने का   
मेरे जीवन कि तरह..........
काश वो आ जाते ........
अब तो............... 
राह देखते देखते आंखो मे नमी भी न रही 
शायेद वो मिले तो वो हसी भी न रही 

फिर भी है इंतेजार उनका 
एक पल को ही मिल जाये वो ....
मुलाकात न हो न सही दूर से ही निकल जाये वो 
बस एक बार मेरी आंखो से गुजर जाये ......

चैन मुझे मिले न मिले न सही 
मेरी रूह को आराम तो  मिल जाये .....
यही सोचकर आज निकला हू घर से 
या तो वो मिलेंगे मुझे 
या मै मिल जाऊंगा उनमे ...

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