आज निकला हूँ अपने आप से बाहर,
साथ अपने अपना ही साया बनकर
देखने क्या हूँ मै और क्या समझता हूँ मै
दो कदम ही चला था की
कुछ आवाज आई बड़ी ही दीन सी,
तन पे कपडे कम चिथड़े ज्यादा ,
साथ में एक नवजात शिशु ,
सही मायनो में उसे जरूरत थी कुछ हमदर्दी की ,
और कुछ चंद कागज के टुकडों की ,..............
अपनी जेब में हाथ डाला फिर बाहर निकाला
बिना हाथ में कुछ लिए ही ,
उसे इशारो ही इशारो में बताया आज कुछ नहीं ,
कल निकलूंगा इधर से तो........
मै अवाक् सा रह गया ..........!!!!!!!!!!!
मायूस था अपने आप से .......
क्या हूँ मै और क्या समझता हूँ मै अपने आप को ,
अभी चार कदम ही चला था की
दिखाई दिया मयखाना .......
अनायास ही उस तरफ कदम बढे जा रहे थे
पर पास में शायद कुछ न था ......
यह विचार आया मुझे की अभी तो ..........
फिर क्यों जा रहा है उधर....
और अगर था तो उसे क्यों नहीं दिया जिसे शायद जरूरत थी...........
अंदर जाते ही अपनी चोर जेब में हाथ डाला एक सौ रुपये का नोट निकला ,
बढाया हाथ और अंदर से एक गिलास निकाला
समय बीता और और वो 'जाम ए दौर' ख़त्म हुआ .....
कुछ खनक अभी भी थी उन हाथो में चाँद सिक्को की ....
उन्हें जेब में रख कर निकल आया वो मैखाने से .......
तेजी से जा रहा है अपने ठिकाने को .....
फिर उसी राह में उसी जगह पे कुछ भीड़ थी .......
लोग खड़े थे, दे रहे थे उलाहना उस माँ को
जो कुछ देर पहले पैसे मांग रही थी ...
अब लोग उसे पैसे तो नहीं पर बिन मांगे ही राय दे रहे थे ......
कि क्यों इसका इलाज नहीं कराया...
पैसे नहीं थे तो मांग नहीं सकती थी .....
लोग तो अपने दिल के टुकड़े के लिए क्या क्या करते है ....
तुम भीख नहीं मांग सकती थी.....
अब जाओ अपने आप ही इसके लिए कफ़न का इन्तजाम करो ...
और दफनाओ अपने आप ही......
मै देख रहा था और सोच रहा था कि शायद ...
अब कुछ मदद करेगा उस असहाय माँ कि .....
जो इस समय पत्थर बन चुकी थी .....
आंसू चेहरे से नहीं आत्मा से निकल रहे हो शायद ..
क्योकि वो रो ही इतना कम रही थी...........
पर तभी कदम बढा दिए उसने अपने घर कि और .....
घर जाकर कदम बढाये अपने बिस्तर कि ओर..
ओर सो गया चिर निंद्रा में .....
मै तो केवल देखता ओर सोचता रह गया.......
कि क्या हूँ मै और क्या समझता हूँ मै
अपने आप को ..............
bुत भाव्hमय् अभिव्यक्ति है। इन्सान की फितरत को अच्छे से अभिव्यक्त किया है अच्छा लिखते हैं सुस्वागत है आपका आशीर्वाद्
ReplyDeleteचिटठा जगत में आपका हार्दिक स्वागत है. आप बहुत अच्छा लिख रहे हैं, और भी अच्छा लिखें, लेखन के द्वारा बहुत कुछ सार्थक करें, मेरी शुभकामनाएं.
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हिंदी ब्लोग्स में पहली बार Friends With Benefits - रिश्तों की एक नई तान (FWB) [बहस] [उल्टा तीर]
अच्छी कविता है ,बिम्ब गाढे करें ,
ReplyDeleteप्रूफ की गलतियाँ सुधारे !
कविता की सम्वेदना पर अच्छी पकड है !
बधाई !!!!!!!!!
mam aapka bahut bahut thanx jo aapne guide kiya but mai abhi kuch cheeje samajh nahi pata hoon plz meri help kare ...............
ReplyDeletethanx hitendra ji......
ReplyDeleteवाह |||
ReplyDeleteबहुत ही बेहतरीन अभिव्यक्ति है...
Shukriya Reena ji
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