यही कहीं
बाँध कर,
छोड़ा था मैंने
तुम्हारी यादों को
और यही कही
तुमने भी,
लपेट कर सफ़ेद चादर में,
दफनाया था
मेरी यादों को,
मैं आज फिर से
लौट आयीं हूँ,
तुम्हारी यादों को
समेट कर
ले जाने को,
क्या तुम भी
लौट आओगे,
सब भूलकर
मुझे अपनाने,
याद रखना,
गलतियाँ करना
इंसानी फितरत है
और उन्हें माफ़ करना
"रूहानी"
और तुम कभी भी
मेरे लिए ,
कम नहीं रहे
किसी फ़रिश्ते से ................
अमर====
बाँध कर,
छोड़ा था मैंने
तुम्हारी यादों को
और यही कही
तुमने भी,
लपेट कर सफ़ेद चादर में,
दफनाया था
मेरी यादों को,
मैं आज फिर से
लौट आयीं हूँ,
तुम्हारी यादों को
समेट कर
ले जाने को,
क्या तुम भी
लौट आओगे,
सब भूलकर
मुझे अपनाने,
याद रखना,
गलतियाँ करना
इंसानी फितरत है
और उन्हें माफ़ करना
"रूहानी"
और तुम कभी भी
मेरे लिए ,
कम नहीं रहे
किसी फ़रिश्ते से ................
अमर====