वो साहिल, साहिल न था जिन्हें हम साहिल समझे ,
वो भवर से भी ज्यादा गहरा था ,
वो कली, कली न थी जिन्हें हम कली समझे ,
वो कांटे से भी कटीली थी ,
वो कश्ती कश्ती न थी जिन्हें हम कश्ती समझे ,
वो कश्ती कागज की कश्ती से भी नाजुक निकली ,
वो सफ़र,सफ़र न था जिस पे हम हमसफ़र खोजने निकले ,
वो सफ़र मेरा अंतिम सफ़र निकला ,
ऐसे ही लोग आते रहे !!!!!!!!! मिलते रहे !!!!!! और जाते रहे !!!!
ऐसे ही हर बार मुझे समझाते रहे ,
मै समझता रहा उन्हें कुछ और
वो कुछ और ही समझाते रहे ,,,,,,,,,,