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Thursday, December 31, 2009

एक तेरा हो जाने के बाद


"अब  तुझे  क्या  बताऊ  "राज ए दिल "
ये "हाल  ए  दिल " दिखाने  के  बाद  

जब  सब  कुछ  तुझको  सौप  दिया 
एक  तेरा  हो  जाने  के  बाद 
अब क्या सिखाऊ तुमको
प्रेम की भाषा सिखाने के बाद
जब सब कुछ तुमको सिखा दिया
खुद को भूल जाने के बाद
अब याद न कुछ और रहा 
सिवा तेरे याद आने के बाद "

Saturday, December 26, 2009

एक छोटा सा खुबसूरत पुष्प


एक प्यारा सा पुष्प
पता नहीं  उसे उसका महत्व 
किसी के भी हाथो में जाने को है बेताब 
कोई तोड़े कोई मरोड़े ....
कोई मंदिर में या मस्जिद में चढ़ा दे  
बस उसे उसकी मंजिल तक पंहुचा दे 
वो तो बस मिट जाना चाहता है 
अपने अस्तित्व को अस्तित्व से मिलाना चाहता है
आज है उसे इस बात की खुशी
वो किसी के काम तो आएगा ......

एक छोटा सा खुबसूरत पुष्प 

Saturday, December 19, 2009

आज अपनी आँखों में ख्वाब फिर से वही है


आज अपनी आँखों में ख्वाब फिर से वही है 
तुम्हे पाने की ललक आज फिर से उठी है 
तुम पा न सकूंगा ये पता है हमे फिर भी,
इस दिल को  मिलने की कसक आज फिर से उठी है 


आज अपनी आँखों में ख्वाब फिर से वही है 
तेरी बाहों में आने को आग फिर से लगी है 
उसी जन्नत में आने को दिल करता है आज 
जिस जन्नत में आके आग दिल को लगी है 


आज अपनी आँखों में ख्वाब फिर से वही है 
मेरी प्यास  बुझाने को तुने .........
कभी पिलाये थे जो पैमाने अपने होंठो से ...
उन्ही पैमानों की प्यास आज फिर से लगी है 


आज अपनी आँखों में ख्वाब फिर से वही है 
कभी खायी थी कसमे हमने अपनी चाहतो की जहा 
देखे थे सपने खुली आँखों से जहा.
उन्ही वादियों में खो जाने की ललक आज फिर से उठी है 


आज अपनी आँखों में ख्वाब फिर से वही है ! ! ! !


Thursday, December 3, 2009

मै हूं एक समुंदर रेत का

मै हूं एक समुंदर रेत का
न जाने कितनी बारीशे आयी
संग अपने बहा ले जाने को ,
न जाने कितनी आन्धिया आयी
संग अपने उडा ले जाने को

मै रहा फिर भी वही ,
उसी जगह ,...... उसी तरह
बिखरा हुआ ...फैला हुआ ............

इन्तेजार करता हुं उस तुफान का
जो ले जाये मुझे अपने संग
खत्म कर मेरा वजूद
हमेशा के लिये
कर दे मुक्त 'अक्स' को इस बंधन से
मिला दे 'अक्स' को 'अक्स'से

तपता हू तपिश मे उसकी
रहता हुं अकेला
फिर याद आती है जैसे जला हुं मै
कोई और न जल जाये
ये सोचकर शीतलता अपने आप ही
मुझ पर आ जाये ................

मै हूं एक समुंदर रेत का

Thursday, November 26, 2009

इंतेजार सिर्फ इंतेजार


आज सोचकर निकला हू घर से 
या तो वो मिलेंगे मुझे 
या मै मिल जाऊंगा उनमे ...........

न जाने कितने दिन से 
न जाने कब से 
शायद सदिया बीती या दिन बीते
अब ये भी याद नही............

वो कह गये थे   
आऊंगा सांझ ढले ही
न जाने कितनी शाम ढल गयी 
न  जाने  कितने  दिन गुजर  गये
फिर भी वो शाम न आयी 
जिसका था मुझे इंतेजार 
वैसे ही जैसे राह भटके पथिक को पथ का 
तेज धार को किनारे का ,टकरा के मिट जाने का   
मेरे जीवन कि तरह..........
काश वो आ जाते ........
अब तो............... 
राह देखते देखते आंखो मे नमी भी न रही 
शायेद वो मिले तो वो हसी भी न रही 

फिर भी है इंतेजार उनका 
एक पल को ही मिल जाये वो ....
मुलाकात न हो न सही दूर से ही निकल जाये वो 
बस एक बार मेरी आंखो से गुजर जाये ......

चैन मुझे मिले न मिले न सही 
मेरी रूह को आराम तो  मिल जाये .....
यही सोचकर आज निकला हू घर से 
या तो वो मिलेंगे मुझे 
या मै मिल जाऊंगा उनमे ...

Wednesday, November 25, 2009

मेरा नसीब

जो चाहा कभी न मिला मुझे 
कुछ ऐसी तकदीर पायी है 
जो देखे सपने हमने 
वो कभी न सच हुए ,
कुछ ऐसी तक़दीर पायी है 
जो ख्वाब बुना इन आँखों ने 
वो ख्वाब ही रह गए 
कुछ ऐसी तक़दीर पायी है 
जब भी संभलना चाहा
त्यों ही डगमगाए कदम 
कुछ ऐसी तक़दीर पायी है 
जाने कैसे लोग तुफानो के झंझावातों में डटे रहे 
मेरी कश्ती तो हलकी  सी लहर में भी भर आयी है 
न जाने क्यू ..................................................

Saturday, November 7, 2009

बिन मौसम बरसात


आज उनसे मिलने की ऋतू आयी है 
न जाने कितने बरसातो के गुजर जाने के बाद ,

वो आये , मिले तो भी बरसात है मेरे लिए
वो मिले और चले जाये तो भी बरसात है मेरे लिए ,

बरसात का मौसम मुझे कुछ यु भाया है
बिन मौसम ही मुझे भिगाया है ,

आज भी कुछ ऐसा ही आलम है
ऋतू है मिलन की और बेला है बारिश की ,

समझ में आता नहीं की ये बारिश क्यू है
उनसे मिलने की खुशी है  या उनसे फिर बिछड़ने का गम ,

बिन मौसम की बारिश से अब डर सा लगने लगा है ,
कही बह न जाऊ इस बारिश में,
ये लगने लगा है ,

आज फिर उनसे मिलने की ऋतू आयी है
थोडी ही सही इसी बहाने बारिश तो आयी है,

कई दिनों से पड़ा था सुखा इस झील में
आज फिर एक नयी लहर आयी है............




Monday, October 26, 2009

आँखों में सैलाब

वो रात ही ऐसी  थी ,
वो बात ही ऐसी थी
अश्क उसकी आँख में भी थे ,
अश्क मेरी आँख में भी थे ,
समुंदर सा सैलाब था हमारी आँखों  में ,
निकलने को बेताब ,
रोक रखा था किसी तरह हमने अपनी पलकों के बांधो से,
फिर भी वो बेताब था उन्हें तोड़कर बह जाने को ,
न चाहते हुए भी हम अश्को को बहने देना चाहते थे ,
अकेले में सारे बांध खुद तोड़ देना चाहते थे ,
रात भेर बैठे रहे आँखों में आँखे डालकर ,
हम बिन कहे ही सब कुछ कह गए ,
बना के आँखों को अपने लफ्जो का सहारा
सीधे उन के दिल में सब कुछ कह गए ....

हम रात भर बैठे रहे ....
कभी कुछ तो कभी कुछ सोचते रहे
सुबह को हम जिस मोड़ पे मिले थे कभी
उसी मोड पे हंसते हंसते  अलविदा कह गए .....
अश्क उसकी आँख में भी थे ,
अश्क मेरी आँख में भी थे ,

Saturday, October 24, 2009

वो मेरी समझ

वो साहिल, साहिल न था जिन्हें हम साहिल समझे ,
वो भवर से भी ज्यादा गहरा था ,

वो कली, कली न थी जिन्हें हम कली समझे ,
वो कांटे से भी कटीली थी ,

वो कश्ती कश्ती न थी जिन्हें हम कश्ती समझे ,
वो कश्ती कागज की कश्ती से भी नाजुक निकली ,

वो सफ़र,सफ़र न था जिस पे हम हमसफ़र खोजने निकले ,
वो सफ़र मेरा अंतिम सफ़र निकला ,

ऐसे ही लोग आते रहे !!!!!!!!! मिलते रहे !!!!!! और जाते रहे !!!!
ऐसे ही हर बार मुझे समझाते रहे ,

मै समझता रहा उन्हें कुछ और
वो कुछ और ही समझाते रहे ,,,,,,,,,,

Wednesday, October 21, 2009

मन की चंचलता

वो चंचल हवाये,
वो काली घटाए,
वो नीला आसमान,
वो सतरंगी जहाँ ,
हर्साता है मेरे मन को ,

जब कभी खो जाता है मेरा मन ,
वो वापस बुलाता  है मुझको ,

वो महकी बगिया ,
वो महका चमन ,
वो खिली कलिया,
वो खिला बदन ,

जब भी निराश होता हूँ ,
समझाते है मुझको ,

की खोकर अपना सबकुछ हम देते है खुशिया जहा को
बिना कुछ लिए ,
तब फिर तू  इतना  निराश है क्यू
जब की तू पा चूका है सब कुछ ,
अपनी चंचलता में जियो ,
न हो उदास , न होने दो किसी को , 
मेरे मन की चंचलता !!!!!!!!!!!

Friday, October 16, 2009

"मेरी माँ "

मै हँसा तो हँसी मेरे साथ ,
मै रोया तो रोई मेरे साथ ,
मै जगा तो जगी मेरे साथ ,
मै सोया तो सोई मेरे साथ ,
खुद की कोई परवाह न की ..
हर कदम हर घडी मेरे साथ
"मेरी माँ"

मै कैसे भूल जाऊ वो पल ...
जब मेरी हँसी की खातिर वो रो भी न पाई
रोना भी चाहा तो उसे बस मेरी याद आयी,
वो जानती थी उनको रोता देखकर ...
शायद  मै भी रो पडूंगा .....
ये सोचकर वो आंसुओ को भी छुपा गई  ...
"मेरी माँ "

रात भर  जाग- जाग कर मुझे सुलाती मेरी माँ ...
खुद को सुखा कर मुझे खिलाती मेरी माँ ...

कभी न सोचा अपने तन का
हरदम मुझे कुछ नया पहनाती मेरी माँ ....
दो साड़ी में गुजार दी उम्र सारी....
मुझे पहनाती रही हर बार नया ....
"मेरी माँ "

Wednesday, October 14, 2009

वो लम्हे

अगर कुछ देना ही है तुझे ,
तो दे दे मुझे मेरी वो हँसी,
जो बचपन में थी ....
जब हर बात पे हँसता था मै ....

कुछ देना ही है तुझे
 तो दे दे मुझे मेरे वो बचपन के साथी ..
जो हर वक्त साथ थे मेरे ...
वो खुशी हो या गम.....
मेरे साथ ही हस्ते थे ..
मेरे साथ ही रोते थे....

कुछ देना ही है तुझे ,
तो दे दे मुझे मेरे वो मिट्टी के खिलोने ,
जिनमे जान न थी ..
पर उनमे मेरी जान थी ..
उनके टूटने पे होता था दर्द मुझे ..
करता था उनकी पट्टी ..
अपने हाथो से ....
और फिर अपने दोस्तों को बताना की ,
आज मेरी गुडिया की एक टांग टूट गयी ..
और उनकी हमदर्दी अच्छी लगती ....

अगर कुछ देना है तो मुझे ......
कर दो मेरा बचपन मुझे नसीब..
ओ मेरे "रकीब" 

एक तलाश


चंचल  लहरें ,
बिलकुल  जीवन  सी ....
कभी  शांत  
अँधेरी  रात  के  जैसे  .....
कभी  ऐसी  मची  हलचल  ....
की  सब  बिखेर  गया ..
मेरे  जीवन  के  जैसे  ..
चाह  कर  भी  कुछ  कर  नहीं  पाता अपने  मन  का ..
सब  होता  है  उसी  के  मन  का  .....
क्या  करू .....???????
कोई  तो  बताओ .......
इस  अनजान  रहो  में  कोई  तो  आओ .....
साथ  न  चलना  चाहो  मेरे  कोई  बात  नहीं ....
खुशी तुम्हारी !!!!!
एक  झलक रोशनी  की  तो  दिखा  जाओ .........
और न चाहिए कुछ भी .....
इक बार राह तो दिखा जाओ...........

Saturday, October 10, 2009

आज भी समझ नहीं पाया अपने आप को

आज निकला हूँ अपने आप से बाहर,
साथ अपने अपना ही साया बनकर
देखने क्या हूँ मै और क्या समझता हूँ मै
दो कदम ही चला था की
कुछ आवाज आई बड़ी ही दीन सी,
तन पे कपडे कम चिथड़े ज्यादा ,
साथ में एक नवजात शिशु ,
सही मायनो में उसे जरूरत थी कुछ हमदर्दी की ,
और कुछ चंद कागज के टुकडों की ,..............
अपनी जेब में हाथ डाला फिर बाहर निकाला
बिना हाथ में कुछ लिए ही ,
उसे इशारो ही इशारो में बताया आज कुछ नहीं ,
कल निकलूंगा इधर से तो........
मै अवाक् सा रह गया ..........!!!!!!!!!!!
मायूस था अपने आप से .......
क्या हूँ मै और क्या समझता हूँ मै अपने आप को ,

अभी चार कदम ही चला था की
दिखाई दिया मयखाना .......
अनायास ही उस तरफ कदम बढे जा रहे थे
पर पास में शायद कुछ न था ......
यह विचार आया मुझे की अभी तो ..........
फिर क्यों जा रहा है उधर....
और अगर था तो उसे क्यों नहीं दिया जिसे शायद जरूरत थी...........
अंदर जाते ही अपनी चोर जेब में हाथ डाला एक सौ रुपये का नोट निकला ,
बढाया हाथ और अंदर से एक गिलास निकाला
समय बीता और और वो 'जाम ए दौर' ख़त्म हुआ .....
कुछ खनक अभी भी थी उन हाथो में चाँद सिक्को की ....
उन्हें जेब में रख कर निकल आया वो मैखाने से .......
तेजी से जा रहा है अपने ठिकाने को .....
फिर उसी राह में उसी जगह पे कुछ भीड़ थी .......
लोग खड़े थे, दे रहे थे उलाहना उस माँ को
जो कुछ देर पहले पैसे मांग रही थी ...
अब लोग उसे पैसे तो नहीं पर बिन मांगे ही राय दे रहे थे  ......
कि क्यों इसका इलाज नहीं कराया...
पैसे नहीं थे तो मांग नहीं सकती थी .....
लोग तो अपने दिल के टुकड़े के लिए क्या क्या करते है ....
तुम भीख नहीं मांग सकती थी.....
अब जाओ अपने आप ही इसके लिए कफ़न का इन्तजाम करो ...
और दफनाओ अपने आप ही......
मै देख रहा था और सोच रहा था कि शायद ...
अब कुछ मदद करेगा उस असहाय माँ कि .....
जो इस समय पत्थर बन चुकी थी .....
आंसू चेहरे से नहीं आत्मा से निकल रहे हो शायद ..
क्योकि वो रो ही इतना कम रही थी...........
पर तभी कदम बढा दिए उसने अपने घर कि और .....
घर जाकर कदम बढाये अपने बिस्तर कि ओर..
ओर सो गया चिर निंद्रा में .....
मै तो केवल देखता ओर सोचता रह गया.......
कि क्या हूँ मै और क्या समझता हूँ मै
अपने आप को ..............
     

Friday, October 9, 2009

झूठी मुस्कराहट

मुस्कुराये जा, तू मुस्कुराये जा
तेरी मुस्कराहट उसका  सुकून है
उसे तेरी मुस्कराहट का इन्तजार  है ,
तू खुस है तो वो भी है खुस ,
जो तू उदास है तो वो तुझसे पहले है ,
अब ये फैसला तुझे करना है ,
अपना गम करना है सामने उसके.
या उसे यु ही पीना है ,
मुस्कुराये जा, तू मुस्कुराये जा
तेरी मुस्कराहट उसका  सुकून है
ऐसा नहीं है वो तेरे साथ नहीं है
तेरे गम का उसे अहसास नहीं है
वो हर पल साथ है तेरे बस तुझे अहसास नहीं है 
जो तुझे गम हुआ तो वो रोयेगा तुझसे पहले ,
तेरी हर खुशी में भी है वो सबसे पहले 
वो साथ है तेरे हर पल ,
तू खुस हो या हो तुझे गम ,
फिर भी तू मुस्कुरा क्योकि उसे इन्तेजार है तेरी खुशी का ,
मुस्कुराये जा, तू मुस्कुराये जा
तेरी मुस्कराहट उसका  सुकून है



 

Tuesday, September 22, 2009

मेरे जज्बात

आज मै हैरा हूँ अपने ही ज़ज्बात पर
कुछ इस कदर किया है परेशान ,
जो सोचता हूँ मेरे ख्यालो में है ,
न जाने क्यों वो मेरे ज़ज्बात में नही,
रात की तनहाईयो में वो आते है मेरे ख्यालो में ,
दिन के उजालो में खो जाते है कही ,
आज मै हैरा हूँ अपने ही ज़ज्बात पर

वो आवाज

"आज भी आवाज आती है उनकी मेरे कानो में ,
वही शिद्द्त ,वही नरमी उनके खनकते अरमानो में ,
अब तो जाना, छोड़ दिया है हमने महफिल में ,
फिर भी न जाने क्यों आवाज आती है मेरे कानो में "


"कभी गुलजार होती थी शामे मेरी उनकी ही आवाज से ,
अब तो दिया जलाने जाते है उनकी ही मजार पे ,
लोग कहते है देखो "अक्स" आज फ़िर देखने अपना 'अक्स '
आया है उनकी ही मजार पे ,
अब उन्हें क्या बताऊ, की आवाज आती है मेरे कानो में "

माँ का आंचल

जब भी आया माँ तेरे आँचल में ,
सारे गम भूल गया ज़माने के ,
मै जब तक भी रहा तेरे आँचल में,
ज़माने के गम मुझे छु भी न सके ,
उनका तो वास्ता था मुझसे चोली दामन का ,
फिर भी वो मुझे छोड़ के चल दिए ,
क्योकि "मेरी माँ " मेरे पास थी ....
"मै जब भी आया माँ तेरे आँचल में "
मै क्या कहु , सब पता है तुझे ,
मै कैसे कहू , लफ्ज ही नही मेरे पास ,
और जो लफ्ज है उनमे इतना साहस नही है
की वो बया करे उसकी शक्सियत ,
तब तू ही बता कैसे कहू ,
मै चाहता हूँ वो सब कहना जो अंदर है मेरे,
पर लफ्ज मेरे, मेरे से ही कर रहे है रुस्वाई ,
ले रहे है वो मेरा इम्तेहा ,
कैसे बताऊ अपने वो सारे राज,
अब बताऊ कैसे तुम्हे अपने दिल के वो अनछुपे राज,
मै उकेरना चाहता हूँ उन्हें कागज पर सुर्ख स्याही के रंग से,
पर वो है की यहाँ भी कर गए मुझसे घात,
शायद वो मुझे अहसां करा रहे है उस पल का ,
जब मै सब जान कर भी चुप रह जाता था ,
सब कुछ कहता था और कुछ न कह पता था ,
वो ले रहे है इम्तेहा उसी पल का ,
आज मै कहना भी चाहता हूँ तो ,
साथ नही दे रहे मेरा ,
अब मै क्या कहु , सब पता है तुझे ,
मै कैसे कहू ,लफ्ज ही नही मेरे पास ,
और जो लफ्ज है उनमे इतना साहस नही है ,

तेरी यादे

अब दिन हो या रात हो,
बस तू मेरे साथ हो ,
दूर रहकर भी तू दूर नही है मुझसे ,
इस बात का तुझे भी एहसास हो,

मै जानता हूँ हर पल तू रह पायेगी मेरे साथ ,
फ़िर भी मै चाहता हूँ अब दिन हो या रात हो ,
बस तू मेरे साथ हो,

अब ये फैसला तू ही कर,
मेरा साथ देगी या देगी जहर,
तू होकर मेरे पास भी,
जाने क्यू दूर सी लगती है,

जाने क्यू तेरी हर अदा कातिल सी लगती है,
तू महजबी भी लगती है कटारी भी लगती है ,
फिर भी तेरी हर अदा जान से प्यारी सी लगती है,

अब दिन हो या रात हो,
तू मेरे साथ हो,
तू मेरे साथ हो ,
बस तू मेरे साथ हो.......