मेरे घर का वही
जाना पहचाना एहसास आज भी है,
जैसा तुम्हारे जाने से पहले था
बस,
तुम्हारे जाने के बाद
अब वो बहार नहीं आती......
हा खिल जाते है कभी कभी
तुम्हारी ही यादों के सतरंगी फूल
और खेलते है मेरे साथ, तुम्हारी ही तरह,
जैसे की तुम खेला करती थी
जैसे ही मै उन्हें अपने ख्वाबों में
सोचना चाहूँ,
न जाने कहाँ चले जाते है
शायद छिप जाते है, या
चिढाते है मुझे
जैसे कह रहे हो,
ढूंढ सकते हो, तो
ढूंढ लो मुझे,
मै तो तुम्हारा अपना हूँ,
तुम अपनी ही चीज नहीं ढूंढ सकते, .........
हर बार
बार बार मै थक सा जाता हूँ
ढूंढते-ढूंढते,
निस्तेज से हो जाते है मेरे प्राण
सिहर उठती है मेरी रूह,
और तब,
जब दिए में रौशनी इतनी धीमी हो जाती है
की अब बुझ ही जाएगी ........
वो खुद बा खुद सामने आकर
अहसासात कराते है, मेरे कमजोर मनोभावों को
जिसमे इक सिरे पर "तुम्हारी रूपरेखा"
और "दुसरे पर उपसंहार"
"मेरे मन का वही कोना
जहा जन्म लेते है तेरी यादों के दो सतरंगी फूल"
=====अमर=====