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Monday, April 15, 2013

मैं अपनी ही लेखनी बन जाऊ



तुम्हारा ही कहना है
उजालो से डर लगता है
फिर तुम ही कहो
कैसे न मैं रात बन जाऊ !

बिखर जाऊ मैं शबनमी बूंदों सा
ये चाहत है गर तुम्हारी
फिर तुम ही कहो
कैसे न मैं पिघल पिघल जाऊ

टूट कर चाहू तुम्हे
चाहे जैसे धरती को रात रानी
फिर तुम ही कहो
कैसे न मैं टूट - टूट  जाऊ

साथ चल सकू हर पल तुम्हारे
गर यही चाहत हैं तुम्हारी
फिर तुम ही कहो
क्यूँ न मैं तुम्हारा साया बन जाऊं

तुम चाहते हो मैं कुछ न कहू तुमसे कभी
जैसे हो हर शब्द मेरा गूंगा
फिर तुम ही कहो
क्यों न मैं अपनी ही लेखनी बन जाऊ

बीते  मेरे , हर दिन, हर पल
तुम्हारी ही पनाहों में
फिर तुम ही कहो
कैसे न मैं तुम्हारी बाँहों में झूल झूल जाऊ

अमर====

22 comments:

  1. बहुत खूब ... अगर उन्हें उजाला पसंद नहीं तो अंधेरा बन जाना ही बेहतर है ...
    लाजवाब ...

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  2. बीते मेरे , हर दिन, हर पलwaah bahut acchi abhiwakti amrendra jee ......

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  3. बहुत सुन्दर....

    तुम्हारा ही कहना है
    उजालो से डर लगता है
    फिर तुम ही कहो
    कैसे न मैं रात बन जाऊ !
    प्यारी सी रचना...

    अनु

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  4. तुम्हारा ही कहना है
    उजालो से डर लगता है
    फिर तुम ही कहो
    कैसे न मैं रात बन जाऊ !.... वाह

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  5. कैसे मन के भाव उतारूँ,
    शब्दों को कैसे समझाऊँ

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  6. कई बार ऐसा होता है, जो कहना चाहो कह न पाओ... अपनी ही लेखनी बन जाओ...

    तुम चाहते हो मैं कुछ न कहू तुमसे कभी
    जैसे हो हर शब्द मेरा गूंगा
    फिर तुम ही कहो
    क्यों न मैं अपनी ही लेखनी बन जाऊ

    बहुत प्यारी रचना, बधाई.

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  7. टूट कर चाहू तुम्हे
    चाहे जैसे धरती को रात रानी
    फिर तुम ही कहो
    कैसे न मैं टूट - टूट जाऊ,,,

    बहुत प्यारी उम्दा प्रस्तुति,आभार

    Recent Post : अमन के लिए.

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  8. तुम चाहते हो मैं कुछ न कहू तुमसे कभी
    जैसे हो हर शब्द मेरा गूंगा
    फिर तुम ही कहो
    क्यों न मैं अपनी ही लेखनी बन जाऊ
    मन कि कसमसाहट को उकेरती सुन्दर सी प्यारी रचना

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  9. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि-
    आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल बुधवार (17-04-2013) के "साहित्य दर्पण " (चर्चा मंच-1210)

    पर भी होगी! आपके अनमोल विचार दीजिये , मंच पर आपकी प्रतीक्षा है .
    सूचनार्थ...सादर!

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  10. लिखना है तो लेखनी बनना पड़ेगा!

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  11. सुंदर एवं भावपूर्ण रचना...

    आप की ये रचना 19-04-2013 यानी आने वाले शुकरवार की नई पुरानी हलचल
    पर लिंक की जा रही है। सूचनार्थ।
    आप भी इस हलचल में शामिल होकर इस की शोभा बढ़ाना।

    मिलते हैं फिर शुकरवार को आप की इस रचना के साथ।

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  12. This comment has been removed by the author.

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  13. लाजवाब भाई |

    कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
    Tamasha-E-Zindagi
    Tamashaezindagi FB Page

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  14. बहुत सुन्दर....बेहतरीन प्रस्तुति !!
    पधारें बेटियाँ ...

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  15. उनींदी आंखों के साथ मेरा
    हाथ पकड़कर, खुद से कहना
    तुम मेरी जरूरत हो
    तुम्हारे बिना नहीं रह सकता
    तब दिल कह जाता है तुम्हें प्यार है
    हमारी जरूरत है
    तुम हो, तो ये दुनिया और हम हैं
    तुम नहीं तो कुछ नहीं
    बेजान सी लगती है दुनियाा
    शायद दिल और सांसों को हो गई है
    तुम्हारी आदत है
    लब्जो से न सही, लेकिन
    तुम्हारे पास न होने पर
    एहसास होता है
    हमें तुमसे प्यार है
    हमारी जरूरत है...
    अमरेंद्र जी, प्यार की भावनाओं को बड़ी रूमानियत से व्यक्त किया है आपने। बहुत ही प्यारी और दिल को छू लेने वाली रचना है।
    धन्नयवाद।

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  16. Behad khubsurat abhivyakti. Aise hi likhte rahiye . Badhai .....

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  17. आपके ब्लॉग को ब्लॉग"दीप" में शामिल कर लिया गया है | जरुर पधारें ।
    ब्लॉग"दीप"

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