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Monday, April 16, 2012

मेरी किताब के वो रुपहले पन्ने



ये कोई कविता नहीं सिर्फ मन के भाव है जो कल रात मेरी किताब में रखी इक पुरानी फोटो देख कर आये....प्रस्तुत है ****

मेरी किताब के वो रुपहले पन्ने" 
जो अनछुए ही रह गए
मेरे अब तक के जीवन में 
जिन्हें, पढने का समय ही नहीं मिला 
या यूँ कहे की 
जिंदगी की आप धापी में,
कही गुम से हो गए शायद  

न जाने कब से 
संभाल कर रखा है,
उन्हें मैंने, 
अपने दिल की अलमारियों में, 
अपनी ही साँसों की तरह, 

आज फिर से 
बंद अलमारियों से 
बुलाते है 'वो'  मुझे 
उन छुटे हुए किस्सों को 
समझाने के लिए, 
जो कभी छुट गए थे, मुझसे ,
खीचते है बरबस अपनी ओर 
मै भी खिचा चला जा रहा हूँ 
उसी तरफ 
शायद आज मुझे उनकी ज्यादा जरुरत है 
या उनके लिए मेरे अहसास जाग गए है 

उनका काफिया आज भी वही है  
जो बरसों पहले थे 
बस आज वो मेरे हिस्से के लगते है 
जो कभी पराये से लगे थे 
वो नहीं बदले, न बदली उनकी तासीर 
बदला तो केवल मेरा नजरियाँ 
"मेरी किताब के वो रुपहले पन्ने"

अमर''........

39 comments:

  1. आज फिर से
    बंद अलमारियों से
    बुलाते है 'वो' मुझे
    उन छुटे हुए किस्सों को
    समझाने के लिए,
    जो कभी छुट गए थे, मुझसे ,
    खीचते है बरबस अपनी ओर
    मै भी खिचा चला जा रहा हूँ
    उसी तरफ
    शायद आज मुझे उनकी ज्यादा जरुरत है
    या उनके लिए मेरे अहसास जाग गए है
    यही एहसास कभी पुरानी आलमारी या किसी पुराने बक्से से निकलते हैं और बहुत कुछ दे जाते हैं

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  2. इंसान ही बदलता है ... यादें तो वैसी ही रहती हैं ...
    अच्छी रचना है ...

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    Replies
    1. दिगम्बर नासवा ji tahe dil se shukriya

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  3. सच है कभी नहीं बदलते पन्ने और उन पर लिखीं इबारतें.....
    शायद हम ही बदल जाते हैं....

    बहुत प्यारी रचना.

    अनु

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  4. बस आज वो मेरे हिस्से के लगते है
    जो कभी पराये से लगे थे
    वो नहीं बदले, न बदली उनकी तासीर
    बदला तो केवल मेरा नजरियाँ
    "मेरी किताब के वो रुपहले पन्ने!

    ...बहुत सुन्दर भावार्थ इन पक्तियों में छिपा हुआ है!....आभार!

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    Replies
    1. डा. अरुणा कपूर. ji shukriya

      Delete
  5. बहुत अच्छी प्रस्तुति..

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  6. वो नहीं बदले, न बदली उनकी तासीर
    बदला तो केवल मेरा नजरियाँ
    superb view to say about my self.
    nice lines and thought.

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  7. बहुत सुन्दर अमरेंद्रजी .....यही यादें तो हमारी धरोहर हैं...हाँ वक़्त के साथ धूमिल पड़ सकती हैं ..लेकिन छूते ही वही ज़ज्बा फिर जिला देती हैं

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  8. वो नहीं बदले, न बदली उनकी तासीर .....kai bar aisa mahsus hota hai....bahut badhiya mai pahle bhi aai thi par kuch technical gadbadi thi......

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  9. बहुत ही सुन्दर...आभार

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  10. जो कभी पराये से लगे थे
    वो नहीं बदले, न बदली उनकी तासीर
    बदला तो केवल मेरा नजरियाँ
    "मेरी किताब के वो रुपहले पन्ने"
    बहुत ही सुन्‍दर भावमय करती पंक्तियां ...लाजवाब प्रस्‍तुति

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  11. .बहुत सुन्दर भावार्थ इन पक्तियों में छिपा हुआ है!
    बहुत प्यारी रचना.

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  12. शायद आज मुझे उनकी ज्यादा जरुरत है
    या उनके लिए मेरे अहसास जाग गए है
    - यही होता है कभी-कभी.

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  13. बहुत सुन्दर रचना अमरेन्द्र जी, हार्दिक बधाई आपको

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  14. वो नहीं बदले, न बदली उनकी तासीर
    बदला तो केवल मेरा नजरियाँ
    अमरेन्द्र जी , बहुत खूब ! आपकी हर रचना एक मोती है ! और ऐसा लगता है जैसे आप एक एक मोती निकल निकल कर ला रहे हैं !

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  15. बहुत खूबसूरत एहसास, पुरानी यादें यूँ ही कई बार जज्बाती बना देती है... बधाई.

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  16. वो नहीं बदले, न बदली उनकी तासीर
    बदला तो केवल मेरा नजरियाँ .

    क्या बात कही. सुंदर एहसास.

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  17. बदला तो केवल मेरा नजरियाँ
    "मेरी किताब के वो रुपहले पन्ने"

    wah har line bahut khubsoorat...

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  18. बहुत सुंदर भाव ... वक़्त के साथ हमारा नज़रिया ही बदल जाता है ...

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  19. जिंदगी की आप धापी में,
    कही गुम से हो गए शायद

    न जाने कब से
    संभाल कर रखा है,
    उन्हें मैंने,
    अपने दिल की अलमारियों में,
    अपनी ही साँसों की तरह,

    ......bahut sunder .waah sabdo me me khubsurti se dhala hai aapne .

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  20. उन छुटे हुए किस्सों को
    समझाने के लिए,
    जो कभी छुट गए थे, मुझसे ,
    खीचते है बरबस अपनी ओर
    मै भी खिचा चला जा रहा हूँ
    उसी तरफ
    शायद आज मुझे उनकी ज्यादा जरुरत है
    या उनके लिए मेरे अहसास जाग गए है

    jst b'ful

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  21. न जाने कब से
    संभाल कर रखा है,
    उन्हें मैंने,
    अपने दिल की अलमारियों में,
    अपनी ही साँसों की तरह,

    Bahut Badhiya....

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  22. कुछ बाते और यादे सदा साथ रहती हैं ......वक्त के हाथो धूमिल जरुर हो जाती हैं ...पर मिटती कभी नहीं

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  23. मेरी किताब के वो रुपहले पन्ने"......bemisaal.....hain.

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