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Friday, November 26, 2010

फरेबी


"अंधेरो  में  
रास्ते  दिखते  है यहाँ,  
दिन  के  उजाले  करते  है  
बगावत,  
रातो  को 
जुगनू  अपनी  चमक  
बिखेरता  है,  
सुबह  का  सूरज  
घना  अँधेरा  है  "

"जहा तक  भी  देखूँ
कुछ  दिखता  नहीं ,
बंद  कर  लू  
जो  आँखे  
तो फिर वही  तेरा
फरेबी  चेहरा  है "

"राहों में आकर तेरी 
राहों में नहीं थे ,
इक तुम थे  
जो मेरे मन मंदिर में होकर भी,
मेरे नहीं थे "

10 comments:

  1. Sameer Ji Hardik Abhinandan hai aapka .....
    Hausla afjai k liye bahut bahut shukriya......

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  2. Ashish ji rachna ka maan rakhne k liye mai abhari hu aapka.shukriya

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  3. फरेबी
    शीर्षक में गज़ब का आकर्षण है जो यहाँ तक खींच लाया .सुन्दर कविता.

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  4. बहुत सुंदर रचना एक एक शब्द भाव लिए हुए

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  5. Shukriya Sanjay ji .....................

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  6. farebi hote hi aaisen..... gahre jajbat ke sath sunder kavita

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  7. Aditya ji bus aapka saath hi .Shukriya .................

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